था कभी गुलजार
कहीं से एक पक्षी आया
चौंच डाल उसमें
नष्ट उसे करना चाहा
पर वह चूक गया
असफल रहा
चिड़िया ने आवाज उठाई
चौच मार आहात किया
उसे बहुत भयभीत किया
वह डरा या थी मजबूरी
वह चला गया
नीड़ देख आहात हुई
चिंता में डूबी सोच रही
क्यूं ना इसे इतना
मजबूत बनाऊं
फिर से कोई क्षति ना हो
आने वाली पीढ़ी इसे
और अधिक मजबूती दे
कभी ना हो नुकसान इसे
वह तो दुनिया छोड़ गयी
संताने लिप्त निजी स्वार्थ में
आपस में लडने मरने लगीं
चौच मारती आहात करतीं
पर नीड़ की चिंता नहीं
भूले अपनी जन्म स्थली
माँ की नसीहत भी भूले
कई सुधारक आये भी
पर कुछ ना कर पाए
आज भी वह लटका है
जीर्ण क्षीण अवस्था में
उसी वृक्ष की टहनी पर |
आशा