दरकते रिश्तों का
कटु अनुभव ऐसा
हो कर मजबूर
उन्हें साथ लिए फिरता हूँ
है केवल एक दिखावा
दिन के उजाले में
अमावस्या की रात का
आभास लिए फिरता हूँ
इस टूटन की चुभन
और गंध पराएपन की
है गंभीर इतनी
रिसते घावों को
साथ सहेजे रहता हूँ
नासूर बनते जा रहे
इन रिश्तों की
खोखली इवारत की
सूची लिए फिरता हूँ
स्पष्टीकरण हर बात का
देना आदत नहीं मेरी
गिले शिकवों के लिए भी
बहुत देर हो गयी
बड़ी बेदिली से
भारी मन से
उन सतही रिश्तों को
सहन करता हूँ
हूँ बेजार बहुत
पर यूँ ही जिए जाता हूँ |
आशा