आलीशान अट्टालिकाएं
गगनचुम्बी इमारतें बहुमंजिली
विभिन्न वर्ग यहाँ पलते
साथ साथ रहते
भूल् गए
कहाँ से आए ?
हैं कौन ?क्या थे?
और क्या संसकृति उनकी ?
बस एक ही संसकृति महानगर की
दिखाई देती यहाँ वहाँ |
हैं
व्यस्त इतने कि
घर
पर ध्यान नहीं देते
छोटे
मोटे काम भी
इन्हीं
के बल पल रही
पास
ही झोंपड़पट्टी
नारकीय
जीवन जीते
यहाँ के रहवासी |
कुछ
खोजते एकत्र करते
सहेजत
बच्चे
पौलीथीन
के थैले में |
कर्मठता
से खुश हो
शाम पड़े जाते
पाते कुछ पैसे कवाड़ी से
उस कवाड़ के बदले में |
महिलाएं प्रातः रुख करतीं
नगर की ओर
और हो जातीं हिस्सा
उसी संसकृति का |
पैसा हर काम का मिलता
पर जीवन सत्व निचोड़ लेता
जब शाम पड़े बापिस आतीं
फटी टूटी कथरी ही
सबसे बड़ी नियामत लगती
थकी हारी वे सो जातीं
गहरी नींद के आगोश में
तभी वहाँ एक वर्ग जागता रहता
कभी नशे में धुत्त रहता
किसी गुनाह को अंजाम देता
उसे ही अपना कर्म समझता
आय का स्त्रोत समझता
यहाँ पनपते कई गुनाह
साए में अन्धकार के
आकंठ डूबे वे नहीं जानते
क्या होगा अंजाम ?
बस आज में जीते हैं
कल की चिंता नहीं पालते |
आशा