उत्साह कहीं खोगया
जब स्वतंत्र हुए बहुत खुश थे
था गुमान उपलब्धि पर
उत्साह से भरे थे
रहता था इंतज़ार
स्वतन्त्रता दिवस का
स्वतन्त्रता दिवस का
इसे त्यौहार सा मनाने का
फिर सर उठाया चुपके से
अनगिनत समस्याओं ने
सोचा समय तो लगेगा
समृद्धि के आगमन
में
पर ऐसा कुछ भी न हुआ
दूकान लगी समस्याओं की
विसंगतियाँ बढ़ने लगीं
दरार पड़ी भाईचारे में
हुआ धन वितरण असमान
गरीब और गरीब हो गया
धनिक वर्ग की चांदी हुई
धनिक वर्ग की चांदी हुई
भृष्टाचार ने सीमा लांघी
महंगाई भी पीछे न रही
बढती हुई जनसंख्या ने
प्राकृतिक आपदाओं ने
समृद्धि पर रोक लगाई
आम आदमी पिसने लगा
समस्याओं की चक्की में
प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस
नए स्वप्न सजा जाता
तिरंगे की छाँव तले
झूठे वादे करवाता
झूठे वादे करवाता
पर सपने सच नहीं होते
चीनी की मिठास भी
होने लगी कम कम सी
धुनें देश भक्ति गीतों की
आकृष्ट अब नहीं
करतीं
लगती सब औपचारिकता
उत्साह कहीं खो गया
पहले भी विकासशील थे
आज भी वहीँ हैं
आज भी वहीँ हैं
लंबी अवधि के बाद भी
आगे नहीं बढे हैं |
समय का काँटा
थम सा गया है
थम सा गया है
समृद्धि से कोसों दूर
अब भी जी रहे हैं
है बड़ा अंतर सिद्धांत
और व्यवहार में |
आशा
आशा