18 जनवरी, 2013

अमूल्य रत्न सा ----


अमूल्य रत्न सा मानव जीवन 
बड़े भाग्य से पाया 
सदुपयोग उसका न किया
फिर क्या लाभ उठाया |
माया मोह में फंसा रहा 
आलस्य से बच न पाया 
सत्कर्म कोई न किया 
समय व्यर्थ गवाया |
भ्रांतियां  मन में पालीं 
उन  तक से छूट न पाया
केवल अपना ही किया
 किसी का ख्याल न आया |
बड़े  बड़े अरमां पाले पर 
कोई भी पूरे न किये 
केवल सपनों में जिया
 यथार्थ छू न पाया |
अमूल्य रत्न को परख न पाया 
समय भी बाँध न पाया 
 पाले मन में बैर भाव
पृथ्वी पर बोझ बढ़ाया |
आशा






16 जनवरी, 2013

दुविधा

फैला सन्नाटा आसपास 
मन में घुटन भरता 
अहसास एकाकीपन का 
बेचैन कर जाता |
जब भी होता शोर शराबा 
मन स्थिर ना रहता 
कोलाहल  सहन न होता 
मन चंचल होता |
है  यह कैसी रिक्तता 
स्वनिर्मित ही सही 
चंचल मन की हलचल
उसे मिटने भी नहीं देती |
दोराहे पर खड़ी मैं सोचती 
क्या  करू ? कैसे रहूँ ?
यदि  मौन रह सुकून मिलता 
शायद मुखर कोई न होता |
शोर  सहन नहीं होता 
एकाकीपन मन को डसता 
दुविधा  में मन रहता 
कुछ करने का मन ना होता 
खोजती हूँ शान्ति 
जो बाहर नहीं मिलती 
तब  सन्नाटा अच्छा लगता 
मन विचलित नहीं होता 
दुविधा का शमन होता |
आशा







11 जनवरी, 2013

शहीद के मन की


कैसे तुझे बताऊँ माँ 
हूँ मैं कितना खुश किस्मत 
जब तक जिया 
कर्तव्य से पीछे न हटा 
सर्दी से कम्पित न हुआ 
गर्मी से मुंह ना मोड़ा 
अंत तक हार नहीं मानी 
की सरहद की  निगरानी
भयाक्रांत कभी न हुआ 
अब तेरे आंचल की छाँव में 
चिर निद्रा में सो गया हूँ
है मेरी अंतिम इच्छा 
 शहादत व्यर्थ न हो मेरी
पहले की तरह ही
केवल कड़ा विरोध पत्र ही
ना उन्हें सोंपा  जाए
कड़े  कदम उठाए जाएँ
अधिक सजग हो 
निगरानी सरहद की हो|
आशा 

08 जनवरी, 2013

रिश्ता दर्द का

रिश्ता दर्द का :-
ना जाने कहाँ से आये हो
प्रीत की रीत निभाने को
दर्द भी साथ लाए हो
छिपे भावों को जगाने को |
ना ही कभी देखा
ना ही पहचान हुई
बातें करें भी कैसे
कोई सूत्र मिला ही नहीं |
अनजानी आवाज तुम्हारी
दिल में दर्द जगाती है  
आँखें नम हो जाती हैं
बेचैनी  बढ़ती जाती है |
है यह कैसा रिश्ता
ना पहले था
ना आज कोई नाम इसका
फिर भी दिल में उठती पीर
एक संदेशा देती
सोच नहीं पाता
जमाने के सताए गए
कैसे एक सूत्र में बध रहे हैं ?
तुम्हारे स्वर ही काफी हैं
बीती बातों को
मन के भावों को
जी भर कर जीने के लिए|
ना जाओ कहीं 
भुला  न पाओगे
गीतों का संबल ही काफी है
इस रिश्ते को जीने के लिए |
गाओगे जब नया गीत
होगा पर्याप्त
दिल को टटोलने के लिए
इस अनजाने रिश्ते को
नया नाम देने के लिए |
आशा

06 जनवरी, 2013

आचरण

सदाचार घर परिवार में 
पर बाहर होता अनाचार 
घर में अनुशंसा इसकी 
पर उन्मुक्त आचरण घर के बाहर
नैतिकता की बातें अब 
किताबों में सिमट कर रह गईं ||
मन व्यथित होता देख 
दोहरे आचरण वालों को 
तभी खड़े हैं नैतिक मूल्य 
विधटन के द्वार पर |
कितने ही क़ानून बने 
पर पालन नहीं होता 
हर नियम की अवज्ञा का 
तोड़ निकल आता है 
शातिर  बच ही जाते हैं 
बचने का जश्न मनाते हैं |
यदा कदा  पहले भी 
ऐसे किस्से होते थे
पर संख्या उनकी थी नगण्य 
 इतनी  आजादी भी न थी
  रिश्तों की थी समझ 
अनाचार से डरते थे |
आधुनिकता की दौड में
 नैतिकता  का हुआ ह्रास
पाश्चात्य सभ्यता सर चढ़ बोली
हुआ मानवता का उपहास |
कलुषित आचरण में लिप्त 
फैलाते  गन्दगी समाज में
शायद पशु भी हैं  इनसे अच्छे 
मन से संयत होते हैं |
 देती शिक्षा सही आचरण 
जागरूप होता   जनमन
साथ करो उनलोगों का
 जिनका नहीं दोहरा चलन
 हो दूर  बुराई से
वही करें जो उचित लगे
 यही बात यदि युवा समझेते 
गलत काम कोई ना करते |
आशा








03 जनवरी, 2013

आदित्य की प्रथम किरण

आदित्य की प्रथम किरण सा
कितना  सुखद  सानिध्य
और तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श 
कर जाता अभिमंत्रित
 मन मयूर को\
व्योम में  सूर्य बिम्ब से
अरुणिम अधर 
प्रमुदित करते 
मधुर मुस्कान से
 फूल झरते 
अदभुद भाव लिए मुख पर 
कर जाती बिभोर 
टीस  सी होने लगती जब 
कोई छूना चाहता तुम्हें
चाहत है यही 
भूले से भी न छुए किसी का 
साया भी तुम्हे 
सृष्टि की अनमोल कृति हो
ऐसी ही रहो |
आशा