बचपन से ही उमा को लड़किया बहुत अच्छी लगती थीं आस पास की बच्चियों के साथ खेलना ,उनकी चोटी करना उन्हें खिलाना पिलाना आए दिन की बात थी |कभी कभी तो उंहें घर ले आती और अपने पास रखने की जिद्द करती |
शादी के बाद जब पहला बेटा हुआ तब उमा खुश तो हुई पर उसकी बेटी की चाह अधूरी रह गयी |वह बेटे को ही लड़कियों की तरह सजाती सवारती और सोचती अगली बार तो निश्चित ही बेटी होगी |
जहां इतना इंतज़ार किया कुछ वर्ष और सही |
पर जब दूसरा भी बेटा हुआ तब वह बहुत रोई और अनमनी सी रहने लगी |
उसने एक बेटी गोद लेने का मन बना लिया और गोद लेने की हट करने लगी |सब ने बहुत समझाया कहा "जब तेरी बहू आएगी तब सारे अरमां पूरे कर लेना वह भी तो तेरी बेटी ही होगी "
बेटे की शादी की जब बातें चलने लगीं अति उत्साह से सारी तैयारी की |जब पर्चेजिग सीमा पार करने लगी तब भी समझाया "क्या एक दिन में ही सारे अरमां पूरे करोगी "|
पर बह तो बहू में ऐसी डूबी कि भूल ही गयी कि daughter के आगे in law भी लगा है |सालभर भी न हुआ था कि बहू ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए |बहू बहू न हो कर बेटी से भी ज्यादा हो गयी और अपनी मर्यादा भूल स्पष्ट शब्दों में कह दिया "मैंने पहले कभी काम नहीं किया है ,मुझसे रोटी नहीं बनाती "
खैर तीन तीन बाई रखने के बाद भी जब फिजूल की बातें होने लगी तब उमा का मन बहुत दुखी हो गया |वह सोचने लगी आखिर कहाँ भूल हो गयी बहू के साथ व्यवहार में |
| अब उसे लगा अति हर बात की बुरी होती है |यह तो तब ही समझ जाना चाहिए था जब बहू हर बात
बढ़ा चढा कर अपनी सहेलियों को बताती थी और अपनी माँ की आए दिन बुराई किया करती थी |जब वह अपनी माँ की सगी नहीं हुई तब सास की क्या होगी |