एक हथोड़ा व एक बांसुरी
एक साथ रहते
जीवन कितना गुजर गया
यह तक नहीं सोचते |
था हथोड़ा कर्मयोगी
महनतकश पर हट योगी
सदा भाव शून्य रहता
खुद को बहुत समझता |
थी बांसुरी स्वप्न सुन्दरी
कौमलांगिनी भावों से भरी
मदिर मुस्कान बिखेरती
स्वप्नों में खोई रहती |
जब भी ठकठक सुनती
तंद्रा उसकी भंग होती
आघात मन पर होता
तभी वह विचार करती |
क्या कोइ स्थान नहीं उसका
उस कर्मठ के जीवन में
पर शायद वह सही न थी
भावनाएं सब कुछ न थीं
जीवन ऐसे नहीं चलता
ना ही केवल कर्मठता से |
जो डूबा रहता भावों में
कल्पना की उड़ानों में
तब घर घर नहीं रहता
संधर्ष सदा होता रहता |
यह कैसा संयोग कि
दौनों साथ साथ रहते
एक दूसरे को समझते
आवश्यकताएं जानते
एक की कर्मठता
और दूसरे की भावनाएं
यदि साथ ना होतीं
जीवन कितना नीरस होता |
आशा