21 जनवरी, 2014

जब बुलडोजर चला


ताश के पत्तों सा
महल सपनों का ढहा
दिल छलनी हुआ
जब बुलडोजर चला |
एक ही चिंता हुई
जाने कहाँ जाएंगे
कैसे समय निकालेंगे
इस बेमौसम बरसात में |
कोई  मदद न काम आनी है
सारे आश्वासन बेमानी हैं
खुद को ही खोजना होगा
 आशियाना सिर  छिपाने को  |
बस एक ही 
दया प्रभु ने पाली
झोली रही न खाली
कर्मठ हूँ 
साहस रखता हूँ|
हल समस्या का 
 खोज सकता हूँ
इसी लिए दुःख नहीं पालता
अपनी लड़ाई खुद लड़ता हूँ |
आशा

20 जनवरी, 2014

कल्पना साकार न हुई



कल्पना छोटे से घर की
जाने कब से थी मन में
सपनों में दिखाई देता वह 
 और आसपास की  हरियाली
जहां बिताती घंटों बैठ
कापी कलम  किताब ले
पन्ने भावों के भरती
कल्पना साकार करती
पर सपना सपना ही रह गया
कभी पूर्ण कहीं हुआ
व्यवधान नित नए आए
विराम उनका  न लगा 
रुक नहीं पाए
ऊपर से महंगाई के साए
दो कक्ष भी पूरे न हुए
घर अधूरा रहा
प्रहार मन पर हुआ
 यदि एक ही लक्ष होता
मन नियंत्रित होता
तभी स्वप्न साकार होता
केवल कल्पना में न जीता |
आशा

18 जनवरी, 2014

तलाश एक कोने की



कहाँ हूँ कैसी हूँ  किसी ने न जाना
ना ही जानना चाहा
है क्या आवश्यकता मेरी
मुझ में सिमट कर रह गयी |
सारी शक्तियां सो गईं
दुनिया के रंगमंच पर
नियति के हाथ की
कठपुतली हो कर रह  गयी  |
खोजना चाहती हूँ अस्तित्व  अपना
मन की शान्ति पाने का सपना
अधिक बोझ मस्तिष्क पर होता
जब विचारों पर पहरा न होता |
अनवरत तलाश है तेरी
बिना किसी के   आगे बढ़ने की
ऐसा कोना  कहीं तो हो
जहां न व्यवधान कोई हो |
जिन्दगी जैसी भी हो
मैं और मेरा आराध्य हो
दुनियादारी से दूर
शान्ति का एहसास हो |
आशा

16 जनवरी, 2014

चेहरा तेरा

चेहरा तेरा
दर्प से चमकता
सच्चे मोती  सा |
२-
रिश्ता प्यार का
निभाना है कठिन
आज ही जाना |
३-
यूं  न देखते
सोचते समझते
तुझे निभाते |
४-
किया अर्पण
पूरा जीवन तुझे
तूने न जाना |
५-
बूँद स्वेद की
कम नहीं अश्रु से
पीर झलकी |
६-
हुआ चयन
दो बूँद अश्क झरे
मूंदे नयन |

-तिल गुड़ से
बनते लड्डू मीठे
संक्रांति मने |

ईद आ गयी
शीर खुरमा पका
मिठास बड़ी |

14 जनवरी, 2014

सर्द हवाएं



सर्द हवाएं
है धवल चादर
ठिठुरी वादी |

दीदार तेरा
हरता मन मेरा
दीवाना हुआ |

ए मेरी सखी
तू सब भूल गयी
हुई बेगानी |

खिला कमल
झाँक रहा जल में
हो कर मुग्ध |

सुख क्षणिक
आभास नहीं होता
दुखी संसार |

दुःख बसा है
रग रग में तेरे
कैसे सुखी हो |

छटा कोहरा
नन्हीं बूँदें जल की
झरने लगीं |

कुसुम पर
एक बूँद ओस की
रही थिरक  |
आशा