तरकश से निकला
तीर
बापिस नहीं आता
हृदय बींधता जब
खोता जाता संयम |
भूलना भी चाहता
पर
धैर्य साथ न देता
घाव अधिक गंभीर
नासूर होता जाता
|
शब्द चुभ कर रह
जाते
चुभन शूल की देते
शेष रहे जीवन की
शान्ति भंग कर
जाते |
कभी याद आता फेंका
गया
वह मखमल में लिपटा
जूता
जिसे भुलाना संभव
नहीं
केवल पीर ही देता |
वह मृदुभाषी पहले
भी न था
अपेक्षा भी नहीं
थी
पर यह कैसे भूल
गया
कहाँ लगेगा शब्दबाण
कितनों को आहात
करेगा
प्रतिशोध का कारण
तो न होगा ?