24 अप्रैल, 2014
22 अप्रैल, 2014
दुनिया रंग भरी
हर रंग जीवन में आता
किसका कैसा जीवन है
वही उसे परिलक्षित करता |
सात रंग से सजा इंद्र धनुष
सातों फिर भी नहीं दीखते
आपस में मिलने जुलने से
हाथ मिला संधी करते |
जब एक दूसरे पर होते हावी
एक वजूद खोता अपना
प्रथम में विलय हो जाता
अद्भुद छटा बिखराता |
सप्तपदी लगती आवश्यक
अटूट बंधन में बंधने को
जन्म जन्म तक साथ रहे
मन्नत यही माँगते |
सात अजूबे दुनिया के
सभी देखना चाहते
कुछ ही होते भाग्यशाली
उन्हें देखने का सुख पाते |
सात का होगा इतना महत्व
पहले जान न पाया
विचार शून्य सा होने लगा
तभी जान पाया |
आशा
20 अप्रैल, 2014
नया नया बना मतदाता
नया नया मतदाता बना
था उत्साह
था उत्साह
प्रथम बार
मतदान का|
मतदान का|
इतने दिन बीत गए
सुनते सुनते|
प्रजातंत्र में जीते हो
मताधिकार का प्रयोग करो
इसे वोट देना है
कि
उसे वोट देना है
स्वविवेक का प्रयोग करो|
प्रत्याशी हो ऐसा
जो कुछ कर पाए
देश हित हो सर्वोपरी
कठपुतली ना साबित हो|
जितने लोग उतने विचार
अलग उनकी विचार धारा
किसे चुने रोज सुनते
मन स्थिर ना हो पाता|
जाने क्यूं हतौत्साहित हुआ
पैर भारी होने लगे
कदम बढ़ना नहीं चाहते
लगता है मैं जागरूप नहीं|
अभी तक छबि धुधली सी है
किसे चुनूं मतदान करूँ
हूँ एक नया मतदाता
क्या करूँ समझ न पाता|
आशा
हूँ एक नया मतदाता
क्या करूँ समझ न पाता|
आशा
17 अप्रैल, 2014
पैनी धार
है बेवाक विचारों की परिचायक
बिकाऊ नहीं
ना ही लालायित
यशोगान के लिए |
है विशिष्ट सब से जुदा
भावाभीव्यक्ति के लिए |
किसी का प्रभाव न होता इस पर
ना बिकती धन के लिए
कोई प्रलोभन झुका न पाता
उन्मुक्त भाव लेखन में होता |
पारदर्शिता की पक्षधर
यही है लेखनी धार जिसकी पैनी
जो धार पर चढ़ जाता
उसका बुरा हाल होता |
जो सत्य से दूर भागता
इससे बच न पाता
इतना आहत होता
सलीब पर खुद चढ़ जाता |
यही बातें इसकी
मुझे इसका कायल बनातीं
मेरी लेखनी की धार
अधिक तेज होती जाती |
आशा
आशा
15 अप्रैल, 2014
अर्थ अनेक
एक शब्द अर्थ
अनेक
सब के विश्लेषण
सटीक
जब सोचा समझा उपयोग
किया
कितने ही पीछे
छूट गए |
शब्द कोष में
खोजा उनको
एक कल्पना की मैंने
नया साहित्य सृजन
करने की
उन्हें उचित
स्थान देने की |
बड़े साहित्यकारों
की तरह
कुछ का उपयोग
किया भी
पर खरा न उतर
पाया
उनको सम्मान देने
में |
वही शब्द भाषाएँ
अनेक
सब में अर्थ अलग
अलग
कुछ भी तो समान
नहीं
खोता गया शब्दों
के समुन्दर में |
पर जो चाहा वैसी
रचना
ना कल बनी न आज
बन पाई
मैं उलझा रहा नए
पुराने
शब्दो के जाल बांधने में |
अभी भी बेकली छाई
है
मन चाहता तराशना
शब्दों के समूह
को
नया रूप देने को
|
आशा
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