यादें गहराईं
तेरे जाने के बाद
तुझे जान कर
अहसास ऐसा हुआ
अपने अधिक ही निकट पाया
यही सामीप्य
इसकी छुअन अभी भी
रोम रोम में बसी है
यादों की धरोहर जान
जिसे बड़े जतन से
बहुत सहेज कर रखा है
पर न जाने क्यूं
रिक्तता हावी हो जाती है
असहज होने लगता हूँ
उदासी की चादर ओढ़
पर्यंक का आश्रय लेता हूँ
यादों का पिटारा खोलता हूँ
उन मधुर पलों को
जीने के लिए
कठिन प्रयत्न करता हूँ
सफलता पाते ही
पुनः जी उठता हूँ
तेरे सान्निध्य की यादों में |