07 नवंबर, 2015

विचलन


प्रतीक्षा के लिए चित्र परिणाम
मन की बातें मन में ही
उलझी सी सदा बनी रहतीं
कभी सजग कभी सुप्त
उसे अशांत किये रहतीं
कितना भी प्रयत्न करें
पिंड छोड़ नहीं पातीं
उसे बेचैन किये रहतीं
खुशियों के क्षण मुश्किल से मिलते
दुःख से ही सदा  घिरे रहते
तराजू के दोनो पलड़े
ऊंचे नीचे होते रहते
संतुलित न हो पाते
है कितनी आतुरता
संयम  खुद पर रखने को
फिर भी हल सरल
कोई भी नहीं दीखता
पलड़ा दुःख का झुकता जाता
कम न होना चाहता
विश्रांति के पलों में
झंजावात सा उठाता
अधिक अशांत कर जाता
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
जीवन के उतार चढ़ावों से
या यूँ ही विचलन बना रहेगा
चिर निंद्रा के आगमन तक |
आशा

05 नवंबर, 2015

शब्द


शब्द की अहम भूमिका के लिए चित्र परिणाम

भाव न जाने कहाँ से आते 
ह्रदय पटल पर विचरण करते 
आपस में तकरार करते 
मन की भाषा समझते |
शब्द सजग तत्पर हो
कविता को आकार देते
कठिन परिश्रम से ही 
भावों को साकार करते  |
अहम् भूमिका उनकी होती
रचना के निखार में
उसे सार्थक करने में
अंतर मन स्पष्ट करने में |
छोटी बड़ी बातें उन्हें
  ऊंचाई तक पहुंचातीं
कवि वहां स्थान बनाता
जहां सूर्य तक पहुँच न पाता |
अस्वस्थ अनियंत्रित विचार
 उनसे उपजे  शब्द वाण
ऐसे प्रहार करते
मन में दरार पैदा करते |
अर्थ का अनर्थ होता
किसी का भला न होता
मन अशांत होता जाता
जब शब्दों का दंगल होता |
आशा


03 नवंबर, 2015

गंगा मैली हो गई


pradooshit gangaa के लिए चित्र परिणाम
पापों की अति हो गई
बाल बाल डूबे उनमें
फिर धोए पाप नदिया में
पाप तो कम न हुए
 गंगा मैली कर आये
जिसने समेटा उन्हें
 अपने आचल में
अति तो तब हुई
जब पाप इतने बढे
  आंचल में न समाए
  और गंगा मैली हो गई
पतित पावन कहलाने वाली
सारी हदें पार कर गई
पर सब ने सुध बिसराई
जल शुद्धि की बातें
गूंजी सरकारी हलकों में
कुछ  समाचारपत्रों में
सारे  यत्न विफल रहे
उसे स्वच्छ करने के 
यदि पापी संस्कारवान होते
अपने पाप वहां ना धोते
यह हाल उसका ना होता
स्वच्छ निर्मल धारा होती
पतित पावन  बनी रहती |
आशा

01 नवंबर, 2015

मुक्तक

है आज करवा चौथ प्रिये 
जलाए दीप तुम्हारे लिए 
चाँद देखें या तुम्हें 
तुम्ही मन में समाए हुए |

जब से तुम्हें अपना लिया
प्यार का इजहार किया
 रंग तुम्हारा   ऐसा चढ़ा
दूजा रंग न भाया पिया |

जो कभी दो जिस्म एक जान हुआ करते थे
जिक्र हर बात का आपस में किया करते थे
पर आशियाँ उजड़ते ही ,एक बड़ा बदलाव आया
फिर से राहें अलग हुईं ,वे मुंह फेर लिया करते थे |

जब बुरे विचार मन में आते हैं
अंतस खोखला कर जाते हैं
तब प्यार भरी एक थपकी से
हम उनसे बच पाते हैं |

आशा






30 अक्तूबर, 2015

वाणी अनमोल

 

मीठी वाणी दुःख हरती 
कटु भाषा
 शूल सी चुभती 
यही शूल
 दारुण दुःख देते 
सहज कभी
 ना होने देते
मनोभाव
 जिव्हा तक आते 
चाहे जब
फिसल जाते 
बापिस लौट नहीं पाते 
कटुता फैलाते 
आदत से
बाज न आते 
गहरे घाव
 मगर कर जाते 
सुख चैन मन का
हर लेते 
मुसीबतों का
कारण बनते 
वाणी अनमोल
 रस की पगी 
होती मन का दर्पण
 जीवन पर्यंत
 शब्दों का वह  जखीरा 
 याद किया जाता 
यदि तोल मोल कर
 बोला जाता 
संभाषण सब को सुहाता |

आशा




28 अक्तूबर, 2015

मुक्तक मोती


ना कजरे की धार चाहिए
ना नयनों के वार चाहिए
हो आभा प्रचुर मुखारबिंद पर
उसका ही खुमार चाहिए |


शब्दों के ना वार चाहिए
प्यार भरी फुहार चाहिए
नियामत मिले न मिले
छोटा सा उपहार चाहिए |


दृष्टि तेरी मैली सी
नहीं धूप रुपहली सी
कभी तो परदा उठता
ना लगती तू पहेली सी |



जब नजर से नजर मिली
कली मन की खिली
पर नजर हटते ही
प्रसन्नता धूल में मिली |
आशा




आशा


आशा