05 मार्च, 2016
03 मार्च, 2016
ठहराव
चलता जीवन
निर्मल जल
के झरने सा
ठहराव जिन्दगी में
ठहराव जिन्दगी में
गंदे जल के
डबरे सा
पहला रंगीनियों से भरा
पहला रंगीनियों से भरा
हैं अक्षय जो
पर ठहराव उसमें
पर ठहराव उसमें
डबरे की दुर्गन्ध सा
घुमंतू जीवन में ठहराव
कदाचित सुख देता
जहां ठहर जाते
वहीं बसेरा होता
अधिक समय ठहराव
उन्हें भी उबाऊ लगता
जल्दी डेरा उठा
आगे जाने का मन होता
एक वय के बाद
सभी ठहराव चाहते
डबरे से आती दुर्गन्ध
तब भी न चाहते
बीते कल की सुनहरी यादें
सजोए रखते
उनमें ही जीते
कल्पना की उड़ान भरते
नया सृजन करते
जीवन की रंगीनियाँ
ठहराव में भी अनुभव करते
यह ठहराव जीवन में
बहुत मायने रखता
यदि सही उपयोग होता
डबरे से तलाव हो जाता
जीवन तनाव मुक्त हो
रंगीनियों से भर जाता |
यह ठहराव जीवन में
बहुत मायने रखता
यदि सही उपयोग होता
डबरे से तलाव हो जाता
जीवन तनाव मुक्त हो
रंगीनियों से भर जाता |
आशा
29 फ़रवरी, 2016
शिक्षा
शिक्षा के आयाम अनंत
मिलती शिक्षा जीवन पर्यंत
कण कण से मिलती शिक्षा
इसका कोई न अंत |
सर्व प्रथम मां की शिक्षा
फिर शिक्षक से ली शिक्षा
कुछ अनुभवों ने सिखाया
इसके बिना मिली न दीक्षा |
है ज्ञान गुणों की खान
शिक्षा सब का है अधिकार
जो भी इससे रहाअनजान
बिना ज्ञान वह पशु सामान |
आशा
27 फ़रवरी, 2016
अपशब्द
अपशब्दों का प्रहार
इतना गहरा होता
घाव प्रगाढ़ कर जाता
घावों से रिसाव जब होता
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते
छम छम जब बरसते
नदी नाले उफान पर आते
अश्रु धारा थम न पाती
अनुगूंज अपशब्दों की
वेगवती उसे कर जाती
तभी तो कहा जाता है
जब भी बोलो
मधुर ही बोलो
कटु बचन से दूर रहो
मन में कटुता ना घोलो
आशा
25 फ़रवरी, 2016
श्याम सलोने
श्यामल गात
सुदर्शन सुन्दर
मनमोहक छवि तेरी
रोम रोम में बसी
भाव भंगिमा तेरी
तेरा मुकुट
तेरी बाँसुरी
सब से अलग
हैं केवल तेरे ही
श्याम सलोने
मां के दुलारे
वह जाए तुझ पर वारी
जब माखन खाए गिराए
मनवा को भा जाए
नयनों में आ बसी
अनमोल भंगिमा तेरी
श्याम सलोने
तेरी कमली तेरी लाठी
तेरी धैनूं तेरे सखा
मुझको बहुत सुहाय
तू सबसे अलग लगे
मन से छवि न जाय |
आशा
मनमोहक छवि तेरी
रोम रोम में बसी
भाव भंगिमा तेरी
तेरा मुकुट
तेरी बाँसुरी
सब से अलग
हैं केवल तेरे ही
श्याम सलोने
मां के दुलारे
वह जाए तुझ पर वारी
जब माखन खाए गिराए
मनवा को भा जाए
नयनों में आ बसी
अनमोल भंगिमा तेरी
श्याम सलोने
तेरी कमली तेरी लाठी
तेरी धैनूं तेरे सखा
मुझको बहुत सुहाय
तू सबसे अलग लगे
मन से छवि न जाय |
आशा
24 फ़रवरी, 2016
21 फ़रवरी, 2016
है रीत यही इस जग की
है रीत कैसी इस जग की
परिवर्तन में देर नहीं लगती
बचपन जाने कहाँ खो जाता
यौवन की दहलीज पर आ
वह भी न टिक पाता
उम्र यौवन की
अधिक नहीं होती
अधिक नहीं होती
जल्द ही दस्तक
वानप्रस्थ की होती
वानप्रस्थ की होती
यह भी विदा ले लेती
अंतिम पड़ाव आते ही
मोह भंग होने लगता
और जाने कहाँआत्मा
देह त्याग भ्रमण करती
देह विलीन हो जाती
पञ्च तत्व में मिल जाती
केवल यादें रह जातीं
जाने वाला चला जाता
बीता कल पीछे छोड़ जाता
आगमन गमन का
क्रम निरंतर चलता
संसार की चक्की में
सभीको पिसना होता
इससे कोई न बचता
जन्म मरण दोनो ही
पूर्व निर्धारित होते
जन्म का पता होता
पर मृत्यु कहाँ से
कैसे कब वार करेगी
नियंता ही जानता
पर अपने कर्मों का हिसाब
सभी को देना होता
इस लोक में या परलोक में
है रीत यही इस जग की
कुछ भी नया नहीं है
आशा
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