थकी हारी रात को
जब नयन बंद करती
पड़ जाती निढाल शैया पर
जब नींद का होता आगमन
स्वप्न चले आते बेझिझक !
यूँ तो याद नहीं रहते
पर यदि रह जाते भूले से
मन को दुविधा से भर देते
मन में बार बार आघात होता
होता ऐसा क्यूँ ?
जब स्वप्न रंगीन होता
मन प्रसन्नता से भरता
पर जब देखती
किसी अपने को सपने में
चौंक कर उठ बैठती !
सोचती कहीं कुछ बुरा होने को है
ज़रूरी नहीं हर स्वप्न
कोई सन्देश दे !
भोर की बेला में
जो स्वप्न दिखाई देते
अधिकतर सच ही होते
जहाँ कभी गए ही नहीं
स्वप्नों में वे ही दिखाई देते !
पर एक बात ज़रूर होती
चाहे जहाँ भी घूमती
प्रमुख पात्र मैं ही होती !
कुछ लोग दिन में
जागती आँखों से भी स्वप्न देखते
दिवा स्वप्न में ऐसे व्यस्त होते
कल्पना में खो जाते
खुद की सुध बुध खो बैठते !
आशा सक्सेना