11 फ़रवरी, 2019
10 फ़रवरी, 2019
शायरी सरल नहीं लिखना
नियमों को तोड़ने का
छिपे भाव उजागर करने का
हर गज्ञल बेबहर हो गई है |
नाम हुए उसके हजार
हर शख्स गजल पढ़ नहीं सकता
उसमें निहित अर्थ
समझ नहीं सकता
चाहता है शायर कहलाना |
है शायरी के नियमों से अनिभिग्य
जानना भी नहीं चाहता
पर शायरी से हैउसका गहरा नाता
तभी तो हर गजल
बेबहर हो कर रह गई है |
ना तो काफिया ना मक्ता
न कोई जानकारी कैसे लिखी जाए
शायरी में आनेवाले क्रम की |
पर अरमान नहीं छूटते
शायर कहलाने के
मंच पर शेर सुनाने के
तभी शायरी बेबहर हो गई है |
आशा
08 फ़रवरी, 2019
गुलाब
गुलाब तो गुलाब रहेगा
चाहे जिस भी रंग का हो
चाहे जिस काम आए
उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी
जब प्रेमी को दिया जाए
या भगवान को चढ़ाया जाए
या अर्थी की शोभा बने
जाने वाले को विदा करे
या हो रस्मअदाई
हो अकेली या गुलदस्ते में
उसे तो समर्पण करना ही है
चाहे भक्ति के लिए
लाया गया हो
या प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बने
आत्म हनन करना ही है
स्वेच्छा से या अनिच्छा से
है वह परतंत्र
स्वतंत्र छवि नहीं उसकी
जब पेड़ पर होता है
काँटों से घिरा होता है
तोड़ मरोड़ कर
चाहे जब पैरों के तले
मसल दिया जाता है
राह पर फैक दिया जाता है
उसकी है नियति यही |
आशा
06 फ़रवरी, 2019
नजर अपनी अपनी
है नजर अपनी अपनी
जैसा सोचते है वही दिखाई देता है
जो देखना चाहते हैं अपने नजरिये
से
करते
हैं टिप्पणी अपने ही अंदाज में
कभी सोच कर देखना
एक ही इवारत पर
अलग अलग टिप्पणीं होती हैं कैसे ?
यही तो फर्क है लोगों के नजरिये में
कारण जो भी रहता हो
पर है सत्य यही
जिसे दस बार देख कर
कोई
पसंद नहीं आता
एक ही नजर में वही
अपना सुख चैन गंवा देता है
कुछ लोग ऐसे होते हैं
जो
होते निश्प्रह
ठोस धरातल पर रहते हैं
उन पर अधिक प्रभाव
नहीं
जो भी जैसा सोचता
वही
उसे नजर आता
यह तो है प्रभाव अपनी सोच का
आज के सन्दर्भ में बदले सोच का
अक्स स्पष्ट नजर आता है
कहीं कोई चित्र न बदलता
पर
बदलाव नजर आता है
एक ही लड़की किसी को
दिखाई देती जन्नत की हूर
किसी और को वही बेनूर नजर आती
है अलग
अंदाज अपनी सोच का
नजर नजर का फेर है
कोई कह नहीं सकता
किसका है कैसा नजरिया
कोई सोच नहीं पाता
है
क्या पैमाना नजर की खोज का |
आशा
03 फ़रवरी, 2019
शाम कोई फिर सुहानी चाहिए
व्यस्तता इतनी कि
सर उठाने की फुरसत नहीं
पर कभी बेचैनी मन की
रुक नहीं पाती
रुक नहीं पाती
वह चाहती है
शान्ति की तलाश
शान्ति की तलाश
शाम की बेला में
कहीं विचरण करना
कहीं विचरण करना
शाम कोई फिर सुहानी चाहिए
हरियाली मखमली बिछी हो
रंग बसंती दे दिखाई दूर तक
बयार वासंती चुहल करे फूलों से
उसमें बसे फूलों की महक
बयार वासंती चुहल करे फूलों से
उसमें बसे फूलों की महक
पक्षियों की मधुर चहचहाहट
और हो
एहसास
पुरसुकून जिन्दगी का
पुरसुकून जिन्दगी का
जागृत हो भावों का मेला
न हो तन्हाई का झमेला
चारों ओर हों खुशरंग चहरे
कलम और कॉपी लिये
और हों लालायित
कुछ नया लिखने के लिये
शाम कुछ ऐसी ही
सुहानी होना चाहिए
संध्या हो रूमानी सुहानी
और जीवंत मुखर
बस है मन की आकांक्षा यही
शाम कोई ऐसी ही होना चाहिए |
आशा
31 जनवरी, 2019
संग्रह यादों का
कुछ तो ऐसा है तुममें
तुम्हारी हर बात निराली है
कोई भावना जागृत होती है
एक कविता बन जाती है
लिखते-लिखते कलम न थकती
हर रचना कुछ कह जाती
मुझको स्पंदित कर जाती
है गुण तुममें सच्चे मोती सा
निर्मल सुंदर चारु चंद्र सा
एक-एक मोती सी
तुम्हारी लिखी हर कविता
कैसे चुनूँ और पिरोऊँ
फिर उनसे माला बनाऊँ
माला में कई होंगे मनके
किसी न किसी की कहानी कहेंगे
संग्रह उन सब का करूँगा
और रूप पुस्तक का दूँगा
हर कृति कुछ बात कहेगी
मन को भाव विभोर करेगी
तुम्हारी याद मिटने ना दूँगा
हर किताब सहेज कर रखूँगा |
30 जनवरी, 2019
उन यादों में खो जाएं
यहां आओ पास बैठो
हम उन यादों में खो जाएं
वे गीत गुनगुनाएं जो कभी गाया करते थे
उन्हें रचते थे एक दुसरे को सुनाया करते थे
जो प्यार छिपा था उनमें आओ उसे फिर दोहराएं
मुझसे कहीं दूर न जा सकोगे
अटूट प्यार के बंधन को यूं ठुकरा न सकोगे
कैसे भुला पाओगे
जब भी यह मौसम आएगा उन यादों को साथ लाएगा
बार बार वहीँ ले जाएगा
जहां कभी हम मिलते थे अपनी रचनाएं गाते थे
कई धुनें बनाते थे
जब भी आँखें बंद करोगे याद आएंगे वे लम्हें
आखें नम हो जाएगीं
उन्हें विदा ना कर पाओगे
ऐसा कुछ भी तो नहीं था जिसे सच समझ बैठे
कुछ ऐसा कर गए
जिसे सोचना भी कठिन था
अब सीख लिया है वह चर्चा कभी ना हो
जो दिल में चुभ जाए
घाव कर जाए हमें दुखी कर जाए
कभी लव पर वे बातें नहीं आएंगी
गैरों के समक्ष चर्चा का विषय ना बन पाएंगी
चिंता नहीं है कि लोग क्या कहेंगे
पर बंधन यदि टूटा
मुझे मिटा कर रख देगा जीवन वीरान कर देगा
है मेरी इच्छा बस इतनी
हम दौनों फिर से गीत लिखें पहले से प्यार मैं खो जाएं
मेरी अधूरी चाह छोड़
तुम कहीं भी ना जा सकोगे
यदि भूले से हुआ ऐसा मुझे कभी ना पा सकोगे
फिर एकाकी कैसे रह पाओगे |
आशा
उन्हें रचते थे एक दुसरे को सुनाया करते थे
जो प्यार छिपा था उनमें आओ उसे फिर दोहराएं
मुझसे कहीं दूर न जा सकोगे
अटूट प्यार के बंधन को यूं ठुकरा न सकोगे
कैसे भुला पाओगे
जब भी यह मौसम आएगा उन यादों को साथ लाएगा
बार बार वहीँ ले जाएगा
जहां कभी हम मिलते थे अपनी रचनाएं गाते थे
कई धुनें बनाते थे
जब भी आँखें बंद करोगे याद आएंगे वे लम्हें
आखें नम हो जाएगीं
उन्हें विदा ना कर पाओगे
ऐसा कुछ भी तो नहीं था जिसे सच समझ बैठे
कुछ ऐसा कर गए
जिसे सोचना भी कठिन था
अब सीख लिया है वह चर्चा कभी ना हो
जो दिल में चुभ जाए
घाव कर जाए हमें दुखी कर जाए
कभी लव पर वे बातें नहीं आएंगी
गैरों के समक्ष चर्चा का विषय ना बन पाएंगी
चिंता नहीं है कि लोग क्या कहेंगे
पर बंधन यदि टूटा
मुझे मिटा कर रख देगा जीवन वीरान कर देगा
है मेरी इच्छा बस इतनी
हम दौनों फिर से गीत लिखें पहले से प्यार मैं खो जाएं
मेरी अधूरी चाह छोड़
तुम कहीं भी ना जा सकोगे
यदि भूले से हुआ ऐसा मुझे कभी ना पा सकोगे
फिर एकाकी कैसे रह पाओगे |
आशा
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