अर्श से फर्श तक
निगाहें नहीं ठहर
पातीं 
 प्रकृति नटी   ने
गलीचा बिछाया 
मन मोहक रंगों से  भरा|
निगाहें  नहीं ठहरती  जिस पर |
बहुत महनत लगी होगी 
 उसे बनाने में 
चुन चुन कर धागे रंगवाए थे
मन पसंद रंगों से सजाए थे
|
प्यारा सा नमूना चुना था
इतना विशाल  गलीचा बनाने को 
नीले ,हरे रंग के ऊपर उठते चटक
रंग 
देखते ही मन उसे पाना
चाहता |
पर सब की ऐसी किस्मत
कहाँ 
 भाग्यशाली ही भोग पाते
हैं 
ऐसे गलीचे पर सुबह सबेरे
 घूमने  का   आनंद 
कम को ही नसीब हो पाता
है |
यह सुख वही पाते हैं 
जो प्रकृति के बहुत करीब
होते हैं 
उसे सहेज कर रख पाते हैं
|
आशा 





