18 जून, 2019

पालकी

जन्म से ही
 शिशु को मिली पालकी
पहला पालना मिला 
 माँ की गोद का
दूसरा अपने वालों का
फिर आए दिन
 नित नई बाहों में खेल
बचपन बिताया
 जी भर खेल  कर
जवानी जब आई झांकती
 माँ को चिंता हुई
 बेटी की बिदाई की
जब वर आया  
  घोड़ी पर चढ़ कर
 धूमधाम से बिदाई हुई
 पालकी में बैठ कर
तब भी चार कन्धों पर की सवारी
पालकी में हो कर सवार
 चली ससुराल अपनी 
जीवन सहजता से
 सरलता  से बीत गया
धर्म कर्म में भी
 दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
 इसी पालकी में बैठ 
अब आया समय
 संसार से विदाई का 
छोड़ कर यह देह
 आत्मा ने ली बिदाई  
चार कन्धों पर  की सवारी
 अर्थी पर हो कर सवार चली
 अच्छाई बुराई भलाई 
के सारे कर्म
 साथ ले चली अपने
हर जगह महत्व
 देख पालकी का
मन ही मन किया  नमन
 उन सब भागीदारों को
पालकी उठाने वालों को |
आशा




12 जून, 2019

इंसानियत के ह्रास पर










इंसानियत के ह्रास  पर
 कितने ही -भाषण सुन   कर
प्रातः काल नींद से जागते ही
मन का सुकून खो जाता है
अखवार में अधिकाँश
 कॉलम भरे होते  है
आपत्ति जनक समाचारों से
मानावता शर्मसार हुई है
मानव के अवमूल्यन से
दरिंदगी से भरी हुई हैं
आधी से अधिक घटनाएं
समाज में इतना विधटन होगा
कभी कल्पना नहीं थी
सारी मान्यताएं खोखली हो रहीं  
 आधुनिकता की भेट चढ़ती  रहीं  
कुछ कहने पर कहा जाता
है यह सोच का ढंग पुराना
आज के बच्चे यह सब नहीं मानते
पर हम तो इतना जानते हैं
जब भी किसी अवला की
 चुन्नी तार तार हुई है 
किसी अबोध के संग दुराचार  हुआ है 
उसे मार कर फैका गया है
निगाहें शर्मसार हुई हैं
मन में पीड़ा होती है 
दरिंदगी की हद होती है
इंसानियत दम तोड़ रही है
आधुनिकता को कोस रही है |
आशा

11 जून, 2019

परचम


उठो चलो आगे बढ़ो
                                                               थामों हाथ ऐसे लोगों का
                                                             जो हमसफर हों हमराही हों
                                                               मनोबल पर नियंत्रण रखो
                                                             कभी भूल से भी डिगने न पाए
                                                            तभी पहुँच पाओगे लक्ष तक
                                                          ऊंचाई की आखीरी पायदान पर
                                                        स्वर्ग में विचरण का अनुभव करोगे
 वहां पहुँचना कठिन तो है पर असंभव नहीं
हर यत्न सफलता में बदलो
फिर परचम लहराओ पूरे आत्म विश्वास से
करो सपने पूर्ण अपने और अपनों के
है यही कामना का धन जो सजोया है
अपने मन के आँगन में |
आशा

                       

07 जून, 2019

ओस की एक बूँद पत्ते पर

a

वह चित्र क्या
जो सोचने को बाध्य न करे
इसमें है ऐसा क्या विशेष
जो शब्दों में बांधा न जा सके
सोच तुरन्त मन पर छा जाए
शब्दों में सिमट जाए
तभी लेखन में आनंद आए
डाल से बिछुड़े पत्ते पर
शवनम का मोती हो
जिस में प्रकृति की छाया
सिमटी हो सूक्ष्म रूप में
तब कैसे लेखन से हों  महरूम 
स्वतः ही कलम चलने लगती है
एक नई छबि मन में उभरने लगती है |
                                                                            आशा

04 जून, 2019

उजाला


चाँद की चांदनी
खिड़की से अन्दर झांकती
कण कण हो जाता जगमग
रौशन होता घर द्वार |
नन्हें दीप देते उसका साथ
पर सह न पाते वायु का वार
हार थक कर सो जाते
धीमाँ हो जाता उजाला |
पर चांदनी हार न मानती
दुगने बेग से फैल जाती
                                                चमकाती घर द्वार |
                                                                       आशा

01 जून, 2019

वाकयात कुछ ऐसे





वाकयात कई ऐसे होते हैं
सारा करार गुम हो जाता है
यूँ तो कोई बात नहीं होती
 बातों के बतंगड़ बन जाते हैं |
कहीं कोई गोलमाल होता है
उसे कानों कान खबर नहीं होती
प्यार तो नहीं होता पर
चर्चा सरे आम हो जाती है |
बाकयात से घबरा कर
वह अपना मुंह छिपा लेते हैं
कोई फलसफा नहीं बनता पर
बिनाबात शर्मसार हुए जाते हैं |
आशा

28 मई, 2019

अभाव हरियाली का





खँडहर में कब तक रुकता
आखिर आगे तो जाना ही है
बिना छाया के हुआ बेहाल
बहुत दूर ठिकाना है
थका हारा क्लांत पथिक
पगडंडी पर चलते चलते
सोचने को हुआ बाध्य
पहले भी वह जाता था
पर वृक्ष सड़क किनारे थे
उनकी छाया में दूरी का
तनिक भान न होता  था
मानव ने ही वृक्ष काटे
धरती को बंजर बनाया
 कुछ ही पेड़ रह गए हैं
वे भी छाया देते नहीं
खुद ही धूप में झुलसते 
लालची मानव को कोसते
जिसने अपने हित के लिए
पर्यावरण से की छेड़छाड़
अब कोई उपाय न सूझता
फिर से कैसे हरियाली आए
  पथिकों का संताप मिटाए |
आशा