सुख तो होता चंद दिनों का
पर तुमने साथ दिया है मेरा
दुःख तुमने सच्ची मित्रता निभाई है
जीते है साथ मरने की किसने देखी|
जीवन से कभी असंतोष न हुआ
सोच लिया यही है प्रारब्ध मेरा
सदा हंसती रही हंसाती रही
अब न जाने क्यूँ उदासी ने घेरा |
कल्पना में ही जीवन जिया
कठिनाई को बोझ न समझा
हवा का रुख हुआ जहां
उस ओर ही बहती चली गई |
जरा सी है यह जिन्दगी
खिले फूल को मुरझाना ही होगा
आज नहीं तो कल
पंचतत्व में मिलना होगा |
यह जान लिया है मैंने
अब तक स्वप्नों में खोई थी पर अब नहीं
सत्य के इतने करीब आकर
दूर कैसे जा पाउंगी |
आशा