28 दिसंबर, 2020

ओस की नन्हीं बूँदें


                                                                    ओस की  नन्हीं बूँदें  

हरी दूब पर मचल रहीं  

धूप से उन्हें  बचालो

कह कर पैर पटक रहीं |

देखती नभ  की ओर हो भयाक्रांत  

फिर बहादुरी  का दिखावा कर

कहतीं उन्हें भय नहीं किसी का  

रश्मियाँ उनका  क्या कर लेंगी |

दूसरे ही क्षण वाष्प बन

अंतर्ध्यान होती दिखाई देतीं  

वे छिप जातीं दुर्वा की गोद में

मुंह चिढाती देखो हम  बच गए  |

पर यह क्षणिक प्रसन्नता

अधिक समय  टिक नहीं पाती

आदित्य की रश्मियों के वार से

उन्हें बचा नहीं पाती |

 

आशा

 

 

25 दिसंबर, 2020

क्रिसमस पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं

क्रिसमस के पावन अवसर पर आप सब को हार्दिक शुभ कामनाएं |
नयासाल खड़ा दरवाजे पर
साथ में ढेरों खुशियाँ लिए
कटुता मन से रहे दूर
रहें सदा स्नेह का गुलदस्ता लिए |
आशा

 

जान सांसत में

 

जान सांसत में

एक जंगल में एक पेड़ के नीचे बहुत से पशु पक्षी एक साथ रहते थे |उन में आपस में कभी भी तकरार नहीं होती थी |सब मिल जुल कर रहते थे |आपस में हर समस्या का हल खोजने की क्षमता थी उनमें |किसी बात पर बहस नहीं करते थे |यदि किसी ने कोई बात कही होती उस पर पहले मनन चिंतन करते फिर उस कार्य को अंजाम देते |

   एक दिन दो व्यक्ति भी उसी पेड़ के नीचे आकर रुके |थोड़ी देर तो शांती रही फिर बिनाबात बहस में उलझे रहे |धीरे धीरे बहस इतनी उग्र हो गई कि दौनो में हाथापाई होने लगी |कुछ देर तो पशुपक्षी मूक दर्शक हो कर यह नजारा देखते रहे |पर फिर एक गाय ने बीच बचाव करने की कोशिश की |वह बोली आपस में क्यूँ लड़ रहे हो हमको देखो हम तो अलग अलग जाति के लोग है पर फिर भी आपस में नहीं झगड़ते |तुम तो दोनो ही मनुष्य हो |फिर भी एक दूसरे  के खून के प्यासे हो रहे हो |संसद का नजारा दिखा रहे हो

      तुम यहाँ से चले जाओ नहीं तो तुम्हारी यह आदत हमारे ऊपर भी बुरा असर डालेगी |यदि यहाँ रहना चाहते हो पहले मिलजुल कर रहना सीखो |तुमसे तो हम ही अच्छे हैं |हम  किसी भी प्रकार का बैर मन में नहीं रखते |अब बिचारे मनुष्यों की जान सांसत में  आगई वे तो राजनीति के अखाड़े से आए थे ||वह या तो चले जाएं या अपने स्वभाव में परिवर्तन करलें |दोनो ही सोच में पड़ गए अपनी गलती का एहसास हुआ और मन में पश्च्याताप |करें तो क्या करें |वे थे आदतों से लाचार |मन मसोस कर रह गए |

आशा

23 दिसंबर, 2020

नव वर्ष



                                                                     नव वर्ष आनेवाला है

 नई कल्पना की उड़ान भरो

क्या करोगे कैसे करोगे

नए  साल का जश्न कैसे  मनाओगे  |  

यही  सोचो मन की गहराई में

उसकी नवीन   रूपरेखा तैयार करो  

पूरे जोश से तैयारी में जुट जाओ

नई  पतंग की डोर आगे बढाओ |

 नए कार्य को करने के लिए

कुछ तो अभिनव  विचार अपनाओ  

जब कल सुबह होगी सूर्योदय  होगा

नवल रश्मियों से सारा जग स्नान करेगा

 कायनात पर एक अनोखा निखार होगा

 नव किश्लयों को अनोखा एहसास होगा |

 प्रसन्न मन उत्फुल्ल होगा

 नए स्वप्न जागेंगे खुले  नयनों में

बीता कल तो  बीत गया

अब आनेवाले कल की सोचो |

 उत्साह से कोई भी कार्य करो

उसमें ही जी जान लगाओ

 उमंग  में कोई कमी न हो  

पूरी लगन का परिचय दो |

आशा

 

 

22 दिसंबर, 2020

प्रतीक्षा



रातें काटी तारे गिन गिन
थके  हारे नैन  ताकते रहे  बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उसका  उस ओर
विरहन जोह रही राह तुम्हारी
कब तक उससे प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर के तरसाओगे |
क्या किया ऐसा  उसने
 जो तुम  समय पर ना आए
या जानना चाहते हो
कितना लगाव है उसको तुमसे
अब और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे |
प्रतीक्षा का भी है  अपना अंदाज नया
पर भारी पडा है  यह इन्तजार  उसे
तुम्हारे अलावा सब जानते हैं
जब देखोगे उसका हाल बुरा
बहुत पछताओगे |
अगर जाना ही था तो बता कर जाते
वह इस हद तक परेशान तो न होती
इंतज़ार तो होता अवश्य पर
बुरे ख्यालों की भरमार न होती
रोते रोते उसका यह हाल तो न होता
दिल में  बुरे विचारों की भरमार न होती |
प्रतीक्षा की आदत है उसको  
 क्या होता यदि बता कर जाते
इन्तजार की घड़ी कैसे कट जाती
वह जान ही नहीं पाती
बहुत उत्साह से दरवाजा खोल
मुस्कुरा कर  तुम्हारा स्वागत करती |
आशा


05 फ़रवरी, 2012

प्रतीक्षा

मैं आज अपनी ५००वी रचना प्रेषित कर रही हूँ :-                                                                                                   
ह्रदय  पटल पर
अंकित शब्द 
जो  कभी सुने थे 
यादों  में ऐसे बसे 
कि  भूल नहीं पाता
कहाँ कहाँ नहीं भटका 
खोज  में उसकी 
मिलते  ही 
क्यूँ न बाँध लूं 
उसे  स्नेह पाश में 
जब  भी किसी
गली तक पहुंचा
मार्ग अवरुद्ध मिला
जब उसे नहीं पाया 
हारा  थका लौट आया 
आशा  का दामन न छोड़ा
लक्ष्य  पर अवधान रहा
आगे क्या करना है
बस यही मन में रहा 
हो  यदि दृढ़ इच्छा शक्ति
होता कुछ भी नहींअसंभव
फिर भी यदि
वह नहीं मिल पाई
आस का दीपक जला 
चिर  संध्या तक 
प्रतीक्षा करूँगा
आशा














31 मईयुगांतर