28 जनवरी, 2021
पिता
बदल तो न जाओगे
ऐसी आशा नही थी कि
तुमने मुझे जाना न होगा
सतही तुम्हारा प्यार होगा
दोहरी जिन्दगी तुम्हारी
मुझसे सही नहीं जाती |
तुमने मुझे पहले भी न समझा
अब भी नहीं
यह दुराव क्यूँ
कुछ सोचते हो और करते कुछ और |
शब्दों की हेराफेरी
तुम्हें भाती होगी पर मुझे नहीं
मैं जो भी सोचती हूँ
उसी लीक पर चलती
हूँ|
मेरा मन हैं शीशे जैसा
इधर उधर भटकता नहीं
जिस पर होता विश्वास
उसी का अनुकरण करता |
यही बात मुझे
तुमसे करती अलग
चहरे पर लगा एक और चेहरा देख
मुझे अपनापन नहीं लगता |
जी जान से तुम्हें अपनाया
बदली हुई तुम्हारी तस्वीर देखी
मन को ठेस लगी
क्या तुम पहले जैसे
नहीं हो पाओगे
जब केवल मुझे ही प्यार करोगे
जब रूठ जाऊंगी
तुम ही मुझे मनाओगे
वादा करो कहीं फिर से
बदल तो न जाओगे |
आशा
27 जनवरी, 2021
एक और नया पन्ना जुड़ा
जीवन की पुस्तक मेंआज
एक पन्ना और जुड़ा है
कभी सोचा न था
यह क्या हुआ है |
हर बार की तरह
इस बार भी उसे
अपठनीय करार दिया
गया|
मन में विद्रोह उपजा
ऐसा क्यूँ हुआ ?
किस कारण से हुआ?
पर अभी तक प्रश्न अनुत्तरित
हैं
इनके उत्तर ढूँढूं कहाँ
जिससे भी जानना चाहा
उसी ने कहा यह तो
जीवन में आने वाली सामान्य
सी
सहज ही सी
प्रतिक्रिया है |
कोई कारण नहीं
यूँही चिंता करने
में
मन में व्यर्थ का
भय पालने में |
जीवन कभी सहज न हो पाएगा
ऐसे ही दबा रहेगा यदि
प्रश्नों के बोझ तले
जीना दूभर हो जाएगा |
आशा
26 जनवरी, 2021
रंग मौसमी
03 फ़रवरी, 2017
रंग मौसमी
25 जनवरी, 2021
ओ प्रवासी पक्षी
ओ प्रवासी पक्षी
हम थके हारे राह देखते
हुए क्लांत से
तुम क्यूँ न आए ?
हर समय आहट तुम्हारी
पंख फैला कर उड़ने की
किस लिए बेचैनी होती
मन में हमारे |
क्या तुम राह में भटक गए
या किसी महामारी से
भयभीत हुए पथ भूले
तुम समय पर न आए |
न जाने क्यूँ हमारे नयन तरसे
तुम्हारे दर्शन को
हम भूले तुम्हें भी तो कई कार्य
संपन्न करने होते हैं |
तुम्हारी अपने साथियों के प्रति
अपने किये वादों को
निभाना पड़ता है
शयद तभी तुम न आए |
समय पर तुम्हारे आने की
हमारे साथ समय बिताने की
आदत सी हो गई है
पर तुम भूले |
ओ प्रवासी हमारी भी इच्छा का
कुछ तो ख्याल करो
हमें यूँ न अधर में छोडो आजाओ
अब इंतज़ार नहीं होता |
आशा