होली के रंगों में वह मजा नहीं
जो आता है मिलने मिलाने में
गिले शिकवे दूर कर
वर्तमान में खो जाने में |
बहुत प्यार से मिन्नत कर के
जब कोई खिलाता है गुजिया
उसके हाथों की मिठास
घुल जाती है उसमें |
मन करता है हाथों को उसके चूम लूं
फिर से और खाने की फरमाइश करू
फिर सोच लेती हूँ मन को नियंत्रित रखूँ
लालच की कोई सीमा नहीं होती |
जाने क्यूँ उसकी बनी गुजिया की मिठास
बार बार खाने का आग्रह
खींच ले जाता है उसके पास
जब तक समाप्त न हो जाए गुजिया
और और की रट लगी रहती है |
अंतस का बच्चा जाग्रत हो जाता है
रूठने मनाने का सिलसिला
थमने का नाम नहीं लेता
बड़ा प्यार उमढता है उस खेल में |
प्रतीक्षा मीठी गुजिया खाने की
प्रेम से होलिका मिलन की
जब तमन्ना पूरी हो जाती है
आत्मिक संतुष्टि से बढ़कर कुछ नहीं |
आशा