मन वीणा के तारों में
स्वर साधा है आत्मा
ने
शब्द चुने अंतर घट
से
रचनाओं को सवारा है |
मीठी मधुर तान जब
सुन पाता परमात्मा
खुद पर बड़ा गर्व होता
कहता है वह बहुत
भाग्यशाली |
कुछ ही लोग होते हैं ऐसे
जिन्हें सुनाई दे
जाती
वीणा की वह मधुरिम तान
वे नजदीक ईश्वर के होते
उनकी हर बात की
पहुँच
वहां तक होती सरलरेखा
सी सीधी
कोई व्यवधान न आते
मध्य में
जब उसे ठीक से सुना
जाता
प्रति उत्तर भी वे समय
पर पाते
प्रभु का आशीष पा कर
स्वयं को धन्य समझते
जब मन वीणा की चर्चा
होती
आत्मिक सुख का अनुभव करते
हर चर्चा में बढचढ कर भाग लेते
विचार विमर्श में अग्रणीय रहते
और फूले नहीं समाते |
आशा