नमन तुम्हें
16 अगस्त, 2021
कोरे पन्ने कॉपी के
कॉपी के कोरे पन्ने
कोरे ही रह गए
मगर कुछ
लिख नहीं पाई |
यत्न तो बहुत किये
पर परिपक्वता
न मिली लेखन को
मेरी नादानी से |
मन विषाद से भरा
असंतोष जगा
भावों को समेट नहीं
पाई
शब्दों के जालक में |
बहुत मन था
कुछ विशेष करने का
सब से हट कर
कुछ लिखने का |
ऐसा न हो पाया
उम्र के तकाजे ने
धोखा दिया अधबीच में
भाग्य साथ न दे
पाया|
स्वास्थ्य ने साथ न दिया
भावों को उड़ान न दे पाई
अभिव्यक्ति कुंठित हुई
खुद भावों में सिमटी रही |
जब आत्म मंथन किया
किसी हद तक
सफल तो हुई पर
उत्तंग शिखर तक ना पहुंची |
जो कमी लेखन
में रही
मैं जान तो गई
फिर भी उससे दूरी
बना न सकी |
बोई बेल को आज तक
परवान न चढाया मैंने
समय पा वह मुरझाई
फल न दे पाई |
कोरे पन्ने कॉपी के
कोरे ही रह गए
मेरी पुस्तिका के
पन्ने सारे भर न पाए |
आशा
15 अगस्त, 2021
जन्म से मृत्यु तक
जन्म मरण के बीच
मीलों का फासला
कैसे किसी ने तय किया
वही जानता होगा |
आज तक कोई
वहां जा कर
लौट न पाया
बड़े प्रयत्नों से
भूले भटके जो लौटा |
बड़ा विश्लेषण
वहां का करता
बड़े चाव से सत्य का
चित्रण करता |
किसी ने विवरण
दिया भी तो
नमक मिर्च लगा कर
किस्सा सुनाया |
है कितनी सच्चाई
उस विवरण में
आज तक
जान न पाई |
उत्सुकता और बढ़ी
बहुत अध्ययन किया
पर किसी निष्कर्ष पर
न पहुच पाई |
फिर हार कर
सोच लिया
बिना स्वयं गए
स्वर्ग के दर्शन नहीं होते |
आत्मा कहाँ विचरण करती
कहाँ अपना घर खोजती
फिर से दुबारा
कोई न जानता |
आशा
मध्यप्रदेश
१-हरा भरा है
मेरा मध्यप्रदेश
है प्यारा मुझे
२-पगपग पे
हरियाली यहाँ है
लोग सरल
३-दिल देश का
सभी समाते यहाँ
बड़े प्यार से
४-कहीं से आया
कोई भी यहाँ पर
मिले प्यार से
५-लोग यहाँ के
महमान नवाज
बड़े सरल
६-सभी अपने
न रहा भेदभाव
इस राज्य में
७-टपकता है
रिश्तों से लगाव
यहाँ दिल से
८-मेरा प्रदेश
देखा स्नेह से जब
होता है गर्व
आशा
इस राज्य में
७- टपकता है
रिश्तों से लगाव है
यहाँ दिल से
८-मेरा प्रदेश
देखा स्नेह से जब
होता है गर्व
आशा
13 अगस्त, 2021
पूरे जीवन का लेखाजोखा
जन्म लेते ही मैं जोर से रोया था
जग हंस रहा था खुशियाँ मना कर
क्या इसलिए कि एक और आया
अपनी तकदीर अजमाने इस दुनिया में |
कोई कष्ट न हुआ जब तक बचपन था
बचपन बीता खेल कूद में दुनियादारी से दूर
कभी हंसा कभी रोया पर
सब क्षणिक होता था |
किशोर वय में गैरअच्छे लगते अनुकरण के लिए
बड़ा बुरा लगता था अपनों का कहना
योवन आते ही आकर्षण बढ़ा बालिकाओं से
रिश्ते जोड़े वैध अवैध उनसे |
धीरे से जाने कब यह नशा भी उतरा
स्वप्नों में प्रभु की मूरत आए दिन दिखने लगी
हुआ झुकाव आध्यात्म की ओर
गुरु दीक्षा ले ली उसी में मगन हुआ |
जब शाम हुई जीवन की सारे सोच धीमें पड़े
शरीर साथ छोड़ चला मन भी थकने लगा
अब ख्याल आया इस जीवन से
आत्मा की मुक्ति का शरीर के पिंजरे से |
बार बार ईश्वर का नमन किया
अरदास में खोया रहा दया का भण्डार भरा
जब मृत्य थी समक्ष बंद कर आँखें पडा था
जग रोया मैं मन में हंस रहा था |
जब जिन्दगी का गीत समाप्त होने चला
स्वासों का कोटा समाप्त हुआ
यही रीत जग की रही सब ने देखा अनुभव किया
जब अन्त हुआ चार कन्धों पर हो सवार चला |
कुछ भी साथ नहीं ले चला मैं भी
भली बुरी यादें रह जातीं लोगों में
कुछ समय के बाद वे भी भूल जाते
कभी याद कर लिया जाता कर्मों का लेखा जोखा |
आशा
आखिर कब तक
कब तक यूंही डरते रहेंगे
खुल कर सांस ले न पाएंगे
मन को उदासी घेरेगी
हर मुस्कान की भी कीमतें देंगे |
हंसना रोना सब हुआ पराधीन
क्या यही प्रारब्ध में लिखा है ?
जितना सोचो कम लगता है|
बहुत वितृष्णा होती है
अपनी पराधीनता पर
दासता की गंध आती है
जब खुद पर दृष्टि जाती है |
स्वर्ण की हथकड़ी पहनी थी
पैर सजे थे चांदी की बेड़ियों से
खेलना खाना था मयस्सर
जीवन पहले बड़ा रंगीन दीखता था |
आकर्षण उसका अपनी ओर आकृष्ट करता था
जब ठोस धरा पर कदम रखे
भाव मन के कहीं लुप्त हुए स्वप्न जैसे
बहुर यत्नों के बाद भी न मिल पाए |
जब तंद्रा से जागी
खुद को पराधीन पाया
यही कटु सत्य है दुनिया का
यही समझ में आया |
समाज के नियमों में बंध कर रहना
इतना भी सरल नहीं है
महिलाओं से मिले पूंछा परखा
वे पराधीनता से ढकी हैं सर से पैरों तक |
हम कर्तव्यों से बंधे हैं अधिकारों से कोसों दूर
जब भी अपने अधिकार चाहे
सरलता से कह दिया जाता
आशा
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