काले कजरारे भूरे बादल
तुम जाना काली दास की नगरी में
जहां से मैं आया हूँ |
मालव प्रदेश मुझे ऐसा भाया
जिसे मैं भूल न पाया
वहां के दृश्य मनोरम
है हरियाली चहु ओर |
जब उस प्रदेश से गुजरोगे
मंद गति से बहती पवन
सहलाएगी तन मन
सुहाना मौसम करेगा आकृष्ट तुम्हें भी |
चाहोगे अपना बसेरा बनाना वहां
अवन्तिका में क्षिप्रा स्नान कर देव दर्शन करोगे
महाकाल दर्शनार्थ पहुँचते लोग मिलेंगे
पक्षी कलरव करते होंगे प्रातःकाल की बेला में |
रवि रश्मियाँ अंगड़ाइयां ले कर
जागेंगी अपनी आभा बिखेरेंगी
सातों रंग भरेंगी प्रकृति में
मन मोहक छवि उभरेगी नयनों में |
रात में लुकाछिपी चंद्र और तारों से
नदिया के जल से क्रीड़ा करेंगी
दिन में राह दिखाएंगी आदित्य को
जो निकलता होगा देशाटन को |
आशा