भ्रमर तुम फूलों पर क्यों मंडराते
उनके मोह में बंध कर रह जाते
उन पुष्पों में ऐसे बंधते
कभी बंधन मुक्त न हो पाते |
तुमसे तितलियाँ हैं बुद्धिमान बहुत
पुष्पों से मधु रस का आनंद लेतीं
और दूसरे के पास उड़ जातीं
होती स्वतंत्र किसी बंधन में न बंधती |
इतनी मोहक रंगबिरंगी तितलियाँ जब उड़तीं
सुन्दर छवि हो जाती वहां की
एक फूल से दूसरे पर जाने से
मकरन्ध की सुगंध बगिया में उड़ती |
भवरे तुम काले हो सुन्दर नहीं
तितलियों से क्या तुलना करते
तुम्हारा गुंजन भी नहीं मधुर
जब फँसते माली के चंगुल में तब पछताते |