18 अक्तूबर, 2021

भमर क्यों फूलों पर मंडराते


                       भ्रमर तुम   फूलों  पर क्यों मंडराते

उनके मोह में बंध कर रह जाते

उन पुष्पों में ऐसे बंधते

कभी  बंधन मुक्त न हो पाते |

तुमसे तितलियाँ हैं बुद्धिमान बहुत

पुष्पों से मधु रस का आनंद लेतीं

और दूसरे के पास उड़ जातीं

होती स्वतंत्र  किसी बंधन  में न बंधती |

इतनी मोहक रंगबिरंगी तितलियाँ जब उड़तीं 

सुन्दर छवि हो जाती वहां की

एक फूल से दूसरे पर जाने से

मकरन्ध की सुगंध बगिया में उड़ती |

भवरे तुम काले हो  सुन्दर नहीं 

तितलियों से क्या तुलना करते 

तुम्हारा गुंजन भी नहीं  मधुर  

जब फँसते माली के चंगुल में तब पछताते | 


आशा

16 अक्तूबर, 2021

कोई विधा खोज न पाया




जाने कितने गीत लिखे

बिखरे बिखरे  शब्दों में

कोई विधा खोज न पाया

अभिव्यक्ति के लिए |

बहुत अच्छा लगा

जब किसी ने कहा

वाह क्या गीत है मन मोह लिया

गीत या संगीत दौनों में से कौन

आज तक समझ न पाया |

कोशिश झूटी लगी जानने की

जरूरत क्या है पहचानने की

काम चल ही जाता है

और अधिक की चाह नहीं है |

प्यार से जो मन में आया

वही लिखा  कुछ और नहीं

हर शब्द से जज्बात जुड़े है

कोई बंधन नहीं लिखने के लिए |

स्वतंत्र लेखन भी एक विधा हो जाती

अभिव्यक्ति सफल हो जाती

जब दिल की जरूरत पूर्ण होती

खुश रहने के लिए |

वही सफल लेखक कहलाता

जो अर्थ स्पष्ट कर पाता

अपने लेखन का

उद्देश्य सफल हो जाता लिखने का |

आशा

14 अक्तूबर, 2021

क्या सोचें ?

 


    

कब तक सोचें कितना सोचें

 कोई तो सीमा होगी  इसकी

पर  मस्तिष्क हो रिक्त जब

जीवन अधूरा लगता है |

दिन रात सोचने की बीमारी 

अब आदत सी हो गई है

किसी ने सत्य  कहा है

खाली दिमाग शैतान का घर |

दिल से सोचें अथवा दिमाग से

यादों का सलीब लटकता रहता

बोझ बन कर हर हाल में

 मन  विचलित  करता है | 

कभी सोचकर देखा है क्या ?

यदि हो खाली दिमाग

होगा क्या हश्र हमारा खुद का |

अतीत पीछे भाग रहा  है

कोई बच न पाया इससे

सुख दुःख की सीमा नहीं  है

हर समय अशांति  रहती  है |

कोई तो हल होगा इसका

जब शान्ति जीवन का हिस्सा होगी

 ऐसा होगा जाने कब 

जीवन शैली संतुलित होगी |

आशा

 

क्या आवश्यक सफलता के लिए


 

कितनी शिकायतें सुननी होंगी

उसका अंदाज नहीं है क्या ?

फिर भी कूद रहे  हो बिना तैयारी के  

जिन्दगी के मैदाने जंग में |

कितनी बार सबने समझाया  

पहले सोचो फिर कार्य करो  

यदि दिल दिमाग जाग्रत रखोगे   

कभी न पछतावा होगा  |

 भावुक होना जल्द्बाजी में

 उसी सोच पर कार्य करना

 असफल रहे यदि यत्न न किया

सर न उठा पाओगे  |

 घुटन होगी असफल हो कर तब

कितनी ही बार सोचोगे

पहले ही यदि सोच लिया होता

यह दिन न देखना पड़ता |

आँखें खुली रख जब दिल से सोचोगे

 किसी हद तक सफल रहोगे

दिल का सोच सब सही नहीं होता

यदि प्रतिफल न मिला पछताओगे |

केवल भावनाओं में जीने से

कोई सफल नहीं होता

दिल दिमाग दौनों हैं आवश्यक   

सफलता पाने   के लिए |

साहस के बिना भी कुछ न होगा

प्रयत्न पूरी शिद्दत से करना होगा

इस शिक्षा पर यदि चलोगे तभी सफल होगे

जिन्दगी की कठिन परीक्षा में |

सफलता तुम्हारे कदम चूमेंगी

समाज तुम्हें देगा सम्मान  

गिनी चुनी हस्तियों में होगा नाम 

यथोचित सम्मान तुम पाओगे |

आशा

13 अक्तूबर, 2021

नमन तुम्हें हे जगदम्बे

 




                                      नमन तुम्हें हे जगदम्बे

हर बार तुम्हारे दर पर आई

खाली हाथ कभी न लौटी

 सफल हुई सब कामना मेरी |

हे भगवती माँ शारदे

इसी तरह दरश देना हर वर्ष

वरद हस्त रख सर पर मेरे

देना आशीष मुझे |

मैं कुछ ऐसा कर जाऊं

अपना हित तो सब चाहते

मुझे पर हित की भी हो चिंता 

दो ऐसा वरदान मुझे |

नमन तुम्हें हे माँ दुर्गे

तुम शक्ति की हो प्रतीक

मुझको इतनी शक्ति देना मां

सेवा सब की कर पाऊँ |

आशा

12 अक्तूबर, 2021

है एक बहाना



बीती यादों का आना

                    दिखता है एक बहाना

पलायन की दिखती निशानी

बीता कल लौट कर न आना है |

भविष्य  के स्वप्नों में जीना

ऊंची उड़ान भरना

कल्पनाओं में खोए रहना

दिखाई देता खुद से भागना |

वर्तमान की ठोस धरा पर जीना

जीना ही सच्चाई  है

जिसने पार किया इस दौर को

जीवन सफल हुआ उसका |

जीवन के उतार चढ़ाव ही

सच्चाई हैं वर्तमान की

दूर भागना इससे

कायरता की है निशानी |

जियो बिंदास जीवन शैली

कल की किस को खबर

यहीं छोड़ सब को

इस दुनिया से जाना है |

आशा


डलझील के किनारे बैठा


 
 

एक शाम जब सैर को निकला

मौसम बड़ा मनोरम था

सौरभ  सुगंध भीगे फूलों की

दिग दिगंत में बिखरी थी |

दोपहर की तल्खी से  निजाद मिली  

 परिदृश्य बदलते देर न लगी

 वर्षा की नन्हीं बूदों की  

 रिमझिम फुहार आने  लगी  |

तन मन  भीगा अच्छा लगा

 मन की गर्मीं शांत हुई

आनंद की सीमा न रही 

देखी झील की नीली  आभा |

जल में लेम्प पोस्ट की पड़ती छाया 

पक्षियों की घर लौटने की ललक

  देखा कोलाहल मन भावन लगा

बेचैन हुआ जब गौधूलि बेला में  

कलरव  शोर में बदला |

शाम ढली रात की तन्हाई में

सर्द हवा के झोंकों  ने रोका

कुछ और समय बिताना चाहा

 झील के किनारे बैठा उदासी दूर  हुई   |

आशा