प्रेम के कई रंग देखे
बचपन से आज तक
जब जन्म हुआ
अपूर्व प्रेम माँ का मिला
थोड़े बड़े हुए
मित्रों के प्रेम कासिलसिला चला |
यौवन आते ही शादी की बातो ने उलझाया
पति के प्रेम का सुख पाया
परिवार से रिश्तों को समझा
एक नया प्रेम का रूप दिखा |
आज जब जीवन के
अंतिम पड़ाव पर ठहरी हूँ
भगवत भजन की लौ लगी है
आध्यात्म से प्रेम हुआ है
मैंने ईश्वर में ध्यान लगाया है |
और न जाने कितने प्रेम है दुनिया में
उनकी दुनिया है कितनी विस्तृत
इसकी थाह नहीं मिलती|
प्रेम की व्याख
शब्दों में करना
सरल नहीं
मेरे बस की बात नहीं है |
प्रकृति प्रेम .पशु पक्षियों
से प्रेम
पर्यावरण प्रेम
और न जाने कितने प्रेम हैं
अभी तो इतना ही अनुभव है |
आशा