मेरा पन्द्रहवा काव्य संकलन मधु मालती
29 मार्च, 2022
यह एक बहाना हो गया
यह तो उसे न खोज पाने का
एक बहाना हो गया
अतिव्यस्त हूँ
कहने को हो गया|
ख्याल तक नहीं
आया उसका
जिससे मिले
ज़माना हो गया |
तुमने अपने मन में
झांकने की
कोशिश तो की होती
भले ही कुछ न दिखा
अंघकार के सिवाय|
यही सच था जिसका
तुम्हें ख्याल नहीं आया |
यह भी नहीं जानना चाहा
यही एक और
उसे खोज न पाने का
बहाना हो गया |
कई पत्र लिखे लिख कर फाड़े
पर जाने कहाँ पता खो गया
गली में घूम घूम कर चक्कर लगाए
सीटियाँ भी खूब बजाईं
पर वह जाने कहाँ खो गई
लौट कर न आ पाई |
ना मिलने के सत्तरह बहाने होते
एक यह भी बहाना हो गया
तुम ही न आईं प्रयत्न मेरा
यूँ ही निष्फल हो गया |
आशा
चाह मेरी
हो स्याही काजल सी काली
या हो लाल रक्त सी
दिल का कागज़ कोरा न रहेगा
कुछ तो लिखा ही जाएगा |
जो मन को भाएगा
जिसमें भावनाओं का रंग होगा
दिलों का मिलन होगा
शब्दों का
संगम होगा |
प्यार की खुशबू होगी
महफिल में तालियाँ बजेंगी
हौसला
अफजाई होगी
मेरी आवाज
की गूँज होगी |
शायद मुझे गलतफहमी हुई है
कि मैं एक सफल कलाकार हूँ
या है चाह मेरी उड़ने की नीलाम्बर में
किसको पता है चाह कब पूर्ण होगी |
आशा
27 मार्च, 2022
मोहब्बत किससे
मोहब्बत करूं तुमसे
या तुम्हारी अदाओं से
इस दिखावे भरी दुनिया से
या कि अपने आप से |
अभी निर्धारित कर न पाई
जब से जीवन में बहार आई
कुछ सोचा कुछ समझा
सबसे सरल सबसे सहज
अपनी ओर झुकाव
लगने लगा मुझे
फिर सोचा शायद यह
खुदगरजी तो नहीं |
फिर विचारा मोहब्बत तुमसे
कोई छलावा न हो
या दुनिया का कोई
दिखावा न हो |
बिना सोचे समझे
कूदना इस क्षेत्र में
क्या ठीक होगा ?
तैरना आता नहीं
पार उतरने का स्वप्न
मन में पालना
26 मार्च, 2022
बेखुदी
यह क्या किया ?
तुमने उसे भुलाया बेखुदी में
सोचने समझने का
अवसर तक न दिया |
तुम्हारी बेखुदी अकेले
उसे रास न आई
अधर में लटकी रही
ना जीने दिया ना मरने दिया |
उसने अपना आपा खोया
दुनियादारी से नाता तोड़ा
डूबी रही बेखुदी में
अपने दिल की गहराई में |
उसने क्या गलत किया था
जिसकी सजा दी तुमने उसे
वह खोई बढ़ती का रही
काँटों से भरी अनजानी गलियों में|
तुम बातें तक नहीं करते
सदा गुमसुम रहते
ऎसी बेखुदी किस काम की
तुमने उसे भुलाया |
उसने अपनी उलझनों की
हवा तक न लगने दी तुम्हें
सदा हंसती रही खिलखिलाती रही
पर बेखुदी में तुम भूले उसे |
शादी पहले की और आज की
25 मार्च, 2022
ज़िद
क्यों ज़िद पर अड़े हो
कोई काम करते नहीं
उपर से सब को
दोष देते हो |
है यह कैसा न्याय तुम्हारा
औरों की भी सुनो
समस्या समझो
अपनी ज़िद छोड़ो |
तभी तुम्हें सब प्यार करेंगे
अपना समझेंगे
तुम्हारी अहमियत है कुछ
इसे स्वीकार करेंगे |
तुम्हें इतना सम्मान मिलेगा
मन चाहा स्थान मिलेगा
पर यदि जिद नहीं छोड़ी
यह स्थान भी हाथों से निकल जाएगा|
तुम तरसते रह जाओगे
अहंकारी कहलाओगे
बहस में कोई लाभ नहीं होगा |
कुछ करो
कुछ बन कर दिखाओ
यही चाह है सब की
ज़िद में कुछ नहीं रखा है |
आशा