मैं तेरे आँगन की शोभा
कोई साधारण पौधा नहीं
कोई साधारण पौधा नहीं
सभी का भाव समझना संभव नहीं
मुझे मालूम है
तुम हम से दूर नहीं |
मन ही मन सबसे
कुछ कहना चाहते हो
कभी कोई गाना गुनगुनाते हो
मुस्कुरा कर अपनी बात
हमें समझाते हो |
अचानक गुमसुम हो जाते हो
पहले भी बहुत बोलने के आदि न थे
कभी कभी ही अपनी प्रतिक्रया देते थे
अब सब होते बेचैन
जब तुम बात नहीं करते |
तुम्हारे मन में क्या चल रहा है
सब जानने को बेकरार नजर आते
मैं समझ जाती हूँ तुम्हारे इशारे से
अनजान बनी रहती हूँ उनसे |
तुम्हारे मन में उमड़ते
घुमड़ते भावों को
बहकने नहीं देती भटकने नहीं देती
प्यार तुम्हें करती हूँ अंतरमन से |
आशा
भोर हुई बीती रात्रि
प्रातःनीलाम्बर में लाली छाई
आदित्य ने ली अंगड़ाई
वहां की रौनक बढ़ाई |
मानव समूह जागा नित्य की तरह
अपने कार्यों की ओर रुख किया
जल्दी से धर के कामों को किया
अवधान कार्य करने में लगाया |
टीका टिप्पणी का किसी को अवसर न दिया
मन की प्रसन्नता की सीमा न रही
जब सफलता ने कदम चूमें
और भूरि भूरि प्रशंसा मिली |
अब सोच लिया कार्य में संलग्न हुई
तीव्र गति से कार्य पूर्ण किया
गंतव्य तक पहुंचाया
जिस कार्य को अंजाम दिया |
कभी असफलता का मुंह न देखूं
हार मुझे मंजूर नहीं यही मुझे दरकार नहीं
बिना बात क्यों आंसू बहाऊँ
किसी के मन को दुःख पहुँचाऊँ |
आशा
राम राम बसा मेरे उर में
मैं दूर रहूँ कैसे तुमसे
जब तक राम नहीं होगा मन में
मेरा जीवन अधूरा रहेगा |
दिन रात एक ही रटन
जय हो सीता राम की राधे श्याम की
कुछ और नहीं सूझता
जीवन कैसे कटे हरि नाम बिना
|
यह परिवर्तन आया कब कैसे
न जाने कब कितने समय से
उल्झन में हूँ किससे कहूं
कैसे अपने मन का समाधान करूं|
न जाने कितनी परीक्षाएं
मेरी लोगे
अपना अनुकरण सिखा देना
है यही संजीवनी बूटी
यही मुझे समझा देना |
आशा
1-बिना धन मन के कोई कार्य नहीं होता
यह देखा मैंने अपने छोटे से
जीवन में
एक पत्ता भी न हिल पाए वायु बहाव बिना
क्यों आदत हो गई जान पाना मुश्किल |
2-ज़रा सी बात पर आंसू बहाना
क्या मूर्खता नहीं जज्बातों में बह जाना
दिया जो अनमोल खजाना
अश्रुओं का
क्यों अकारथ जाए बह कर |
3-उद्विग्न हो बेचैन सब को कर जाए
यदि न हो आत्मविश्वास स्वयं
पर
अधर में
लटका ही रह जाए
कठोर धरा पर न टिक पाए |
4-कितनी बेचैनी आसपास
मन को भी घेर लिया उसने
बुद्धि भी विचलित हुई है
कोई विकल्प नहीं छोड़ा उसने |
गली में सीटियाँ बजाते हो
तुम क्यों उसका पीछा करते हो
जग हंसाई का कारण बनाते हो
कभी सोच कर देखना उसके प्रति
क्यों उसके जीवन को
नरक बनाने पर तुले हो
क्या सही है तुम्हारा व्यवहार
उसके प्रति |
मानव योनी की प्राप्ति के
लिए
घूम चुका चौरासी लाख योनियों
में
कहाँ नहीं भटका कितने रूप
धरे
तब जाकर मानव तन मिला |
है सबसे अलग मिलना श्रेष्ठ योनी
का
यदि मन से स्वीकार किया हो
जितने कर्म किये पहले
फल अब भोग रहा हूँ |
ईश्वर ने सभी कर्मों का
लेखा जोखा रखा है मेरे खाते
में
जिनकी पूर्ती के लिए
जाने कितने जन्म लगेंगे |
जाने कब भाग्य के कुकृत्यों
पर ताला लगेगा
इस भवसागर के जालक से
छुटकारा मिलेगा
अब हूँ सतर्क जाने अनजाने
में
यदि कुछ गलत हो जाए
प्रभु से क्षमा मांग लेता हूँ
जिसने मांगी क्षमा
मानो जग जीत लिया उसने|
भगवान के दिशा निर्देश पर
चल कर
अपना मार्ग प्रशस्त किया है
गुरू से मिली प्रेरणा जब से
पीछे पलट कर न देखा है |
उन कार्यों को कभी
नहीं दोहराया
सांसारिकता को त्यागा
माया मोह से बच कर चला
मुक्ति मार्ग पर चल दिया |