22 नवंबर, 2022

झरना एक चित्रकार

 


 एक दिन एक चित्रकार घर में रहते रहते बहुत बोर हो रहा था |उसने सोचा क्यूँ न मैं जंगल में जाऊं और ऊपर जा कर झरने के पास बैठूं वही से इस झरने की रंगीन स्केच बनाऊँ |धीरे  से उसने अपनी  मम्मीं से पूंछा  वहां जाने के लिए |झरना घर से अधिक दूर नहीं था |मम्मीं ने हिदायतें दे कर जाने की इजाजत दे दी | उसने अपना सामान संचित कर जूते पहन कर झरने के उद्गम स्थल पर जाने की तैयारी करली और बड़े उत्साह से खाने के लिए थोड़ा नाश्ता ले लिया और प्रस्थान किया |

थोड़ी चढ़ाई के बाद कुछ समय विश्राम किया और फिर से चलने को तैयार हुआ |लगभग आधे घंटे के बाद ऊपर पहुंचा |उस समय सूर्य की रौशनी झरने में दिखाई पड़ रही थी |रश्मियाँ पानी में आपस में  खेल रहीं थीं |नजारा बहुत  सुन्दर दिख रहा था |उसने अपना केनवास स्टेंड पर लगाया और चित्र बनाया |सोचा घर  जाकर ही रंग भरूगा |सब सामान इकठ्ठा किया और नीचे चल दिया |झरना इतनी  तेजी से बह रहा था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था |फिर देर हो रही थी उसने  जल्दी से  कदम बढ़ाए और कुछ ही समय में घर पहुँच कर सांस ली |अब वह  रंगों से अपनी कृति को सजाने लगा |चित्र बेहद सुन्दर बना था |सब ने बहुत प्रशंसा की |

आशा सक्सेना 

21 नवंबर, 2022

दो सहेलियां

 

दो सहेलीयां

बेला और चमेली नाम की दो बालिकाएं थीं जो आपस में बहुत प्रेम  रखतीं थी एक दिन बेला के पापा उसके लिए एक सुन्दर सा फ्रोक लाए |वह  पहिन कर अपनी सहेली को दिखाने आई |चमेली के पापा की आर्थिक स्थिती तब अच्छी नहीं थी |उस  ड्रेस को  देख चमेली की आँखों में आंसू आ गए |

बेला ने कहा  लो तुम यह पहन लो तुम पर खूब सजेगी |चमेली ने उसे ले लिया पर जब पहना उसको शर्म  आई और बोली मेरे पापा कल ऐसी ही फ्रोक मुझे ला कर देंगे |किसी की कोई वस्तु देख कर उससे नहीं लेनी चाहिए |दुनिया मैं कितनी ही वस्तुएँ  हैं |हर व्यक्ति तो सब को खरीद नहीं सकता |पिता ने शांति से अपनी बेटी को समझाया |वह समझी और अपने पापा से किसी की कोई चीज न लेने का वायदा किया | अब उसका मन किसी चीज को देख कर नहीं ललचाता |उसे जो उसके पास है उसमें ही संतुष्ट है 

आशा सक्सेना 


 


19 नवंबर, 2022

किस से करूं शिकायत


                                                     किसी से क्या चाहिए

शिकायत किससे करू

कोई नहीं सुनता मेरी

 हार थक कर आई हूँ

\इधर उधर क्षमा मांगी

किसी ने  सहारा न  दिया मुझे

 अब तक बेसहारा घूम रही हूँ

किसी से सहारे के लिए |

मैंने की अपेक्षा सबसे  अधिक ही

क्या यही थी भूल मेरी

यदि सहारा न दिया दूसरों ने

फिर से क्यों लौटी उन तक |

अपनी आदत न थी कभी

किसी से सहारा लेने की

पर अब समझ लिया है

 अपने आपको  सक्षम बना लेने की  |

अपनी आदतों में सुधार करना चाहा

कोशिश भी की है

 मन का भय भी

समाप्त न हो पाया आज तक |

मन को  संयत किया है

फिर भी अभी तक

 अपने ऊपर विश्वास न हो पाया

अपने कदम बढ़ाने में

किसी का सहारा तो चाहिए |

आशा सक्सेना 

16 नवंबर, 2022

कभी कोई राज न छिप पाया

 कभी कोई राज न छिप पाया 

जब मिल बैठे दो मित्र साथ  

कुछ उसने कही कुछ हमने सुनी 

किसी के कहने सुनने से |

कोई बात का हल न निकला 

बातों का अम्बार जुटा 

हम दौनों के अंतर मन में 

इस विरोधाभास का अर्थ क्या है |

ना तो  हम जान पाए 

नही सर पैर मिला किसी बात का 

अपनी  बातों पर अड़े रहे 

अपनी बात ही सही लगी 

दूर हुए आपसी  बहस बाजी से 

जब अन्य लोगों ने भी दखलंदाजी की

 उन ने भी बहस में भाग लिया |

बात का बतंगड़ बनता गया 

आपस में   दूरी होती गई 

यह क्या हुआ मन को क्षोभ हुआ 

अशांति ने पीछा न छोड़ा 

वह  मुद्दा भी हल न हो पाया 

फिर हमने अपने आप को समझाया |

इन छोटी बातों को कोई महत्व न दे 

 बातों में उलझने का इरादा छोड़ा 

कोई सकारात्मक सोच को 

अपनाने का फैसला किया |

वातावरण एक दम से बदला 

बहुत खुश हाल हुआ 

मन में खुशहाली छाई 

स्वस्थ मनोरंजन हुआ |

आशा सक्सेना 

14 नवंबर, 2022

दिग दिगंत में



दिग दिगंत में अपने आसपास

कुछ ऐसा है जो खींच रहा उसको

 अपने  पास उस में खो जाने के लिए

जीवन जीवंत बनाने के लिए |

जागती आँखों से जो देखा उसने

 स्वप्न में न  देखा था कभी

वह  उड़ चली व्योम में ऊंचाई तक

पर न पहुँच पाई आदित्य तक  |

ताप सहन न कर पाई जो था आवश्यक

गंतव्य तक पहुँचाने  के लिए

उसने सफलता को नजदीक पाया

मन खुशियों से भर आया |

सफलता अपनी इतने पास देखी न थी

 नैना भर आए थे उसके यह हार देख

दोबारा कोशिश की फिर से  

अब दूरी कुछ कम हुई दौनों में

पर पूरी सफल न हो पाई |

आस्था ईश्वर में जागी आत्मविश्वास मन में

लिया नाम प्रभू का साहस जुटाया

अब बहुत आसान हुआ वहां पहुँच मार्ग

सफलता की चमक  रही  चहरे पर |

आशा सक्सेना


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13 नवंबर, 2022

उस ने की वफा

 उस  ने की थी वफा

 बदले में उसे क्या मिला ?

बेरंग जीवन की कटुता मिली 

कंटकों की सौगात मिली

 जब चाहे चोट पहुंचाई जिन ने 

मन की  तल्खियों के सिवाय

 कुछ भी हांसिल नहीं हुआ |

यहीं हार और जीत का हुआ  निराकरण 

पर सही न्याय न मिल पाया 

 जीवन हारा सब प्रयत्नों को कर  

 धैर्य ने भी साथ न दिया उसका 

मन विचलित हुआ सोचा 

 यह क्या किया ?

किसी मित्र ने भी सही सलाह न दी 

अपनी सलाह पर कायम रहा |

उसे  ही गलत ठहराया 

यदि समय पर चेताया होता 

यह दशा न होती मन की |

उसके मन को ठेस पहुंचाई 

अब कुछ न हो पाएगा 

वफा अधूरी ही रह जाएगी 

जीवन हाथ मलता ही रह जाएगा 

और कुछ भी नहीं मिल पाएगा |

आशा सक्सेना 


12 नवंबर, 2022

जीवन बहुत छोटा सा


                                             आधे से अघिक से जीवन बीता
                                     अधिक ही समय बीता नियोजित कार्य करने में 

 जिनको पूरा  करने का वादा लिया  खुद से |

पर ऐसा न हुआ वे पूर्ण न हो पाए 

समय बीता इतनी जल्दी से 

उसे पकड़ न पाए 

हाथों से फिसली हो रेत  जैसे |

झूठे वादे मुझे नहीं आते 

जो वादाखिलाफी से  मुझे बहकाते 

 रंगीन  रातों के स्वप्न दिखाते  

प्रातः के होते ही सूर्य रश्मियाँ 

अटखेलियाँ करतीं  हरे भरे  वृक्षों  से |

यदि उन कार्यों में मैं भी खो जाती 

अपने वादे  कैसे पूरे कर पाती 

हूँ कैसी अब भी समझ में न आया 

फिर कम से कम वादों की पूर्ती का वादा लिया 

जिससे मन को वादा  अपूर्ण

 रहने का कष्ट न हो 

जीवन का शेष समय जो  बचा है 

हाथ में वादा पूर्ति में पूरा  हो |

कर्तव्य करने के बाद मैं 

मुक्ति मार्ग पर चल पाऊँ 

उन कार्यों का हाथ समय के साथ मिला पाऊँ

  हींन भावना का शिकार न होना पड़े 

अपना आत्म विश्वास फिर से पाऊँ 

अपने मन की संतुष्टि पूर्ण कर पाऊँ |

आशा सक्सेना