आज भोर का तारा टूटा
सुबह का स्वप्न भी देखा
किस बात पर ध्यान दूं
अपने को कैसे दूं सांत्वना
|
कोई कार्य तो ऐसा हो कि
मन में शंका न हो पाए
सब कुछ आसानी से हो
जीवन आगे बढ़ता जाए |
क्यों मेरे मन में हो शंका ?
जीवन जितना बीता
कोई कठिनाई तो नहीं आई
अबतक जिस का सहारा मिला
मैं क्यूँ न जान पाई |
क्या यही अज्ञानता हुई मेरी
मेरे लिए सोच का कारण बनी
जितनी उस से दूरी बनाने की
कोशिश की
वह मेरे पास खिचती आती गई |
मैं खुद को और उसको समझ न
पाया
न जाने क्यूँ खुद को उसके नजदीक पाया
यही हाल कैसे हुआ मेरा
न सोचा न ही जान पाया |
आशा सक्सेना