25 नवंबर, 2022

मुझे बहुत कुछ कहना है

 


 मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है

  किसी  से जो  कह न पाई

 पर तुम ने भी सुनी अनसुनी कर दी

 मन मेरा  आहत हुआ फिर भी बहुत धैर्य रखा  |

जब भी कुछ कहना चाहा  गलत नहीं कहा  है

मैंने तो सही राह चुनी थी वह  भी स्वविवेक से

किसी का प्रभाव नहीं था  मुझ पर

 तुमको कैसे समझाऊँ जान  नहीं पाई अब तक |

तुमने मुझको कितना समझा है

अपनाया है दिल से या नहीं

कुछ तो कहो मुझसे या यूँ ही मुझे बहकाओगे

 मन की कहूं  या नहीं मैं कैसे जानूं |

 सही मार्ग दिखलाओ मैंने तुम्हें देवता माना

अपने मन को खोल कर रख दिया तुम्हारे समक्ष

तुमने फिर भी ध्यान न दिया मेरी बात पर

यही वर्ताव मुझे दुविधा में रखे है कैसे पार करूं उसको |

 मन दुविधा में फंसा है  इस से निकलना चाहती हूँ

तुमसे अपने मन की  बातें करना चाहती हूँ

फिर तुम जो सलाह दोगे मुझे स्वीकार होगा

  मन कुछ तो हल्का होगा |

 

आशा सक्सेना 

 

24 नवंबर, 2022

जंगल में मंगल

 मौसम बहुत अच्छा था पर दिन भर घर में ही रहना पड़ रहा था कोरोना महामारी के कारण |मैंने सोचा क्यूँ न जंगल की सैर को जाएं |जल्दी से थोड़ा नाश्ता बनाया और सब तैयार हो गए  जाने के लिए |पर अभी तक यह तो सोचा ही नहीं किस ओर प्रस्थान किया जाए |पास ही सरोवर था और वहां भी पानी था अथाह|कुछ दिन पहले ही बाँध के तीन गेट खोले गए पानी का प्रवाह बहुत तेज हो गया था |  हमने सोचा पहले आसपास घूम लिया जाए फिर झरने के पास बैठ कर भोजन करेंगे |बच्चों ने दौड़ भाग कर थकान का आनंद ले लिया था |अब वे नहीं चाहते थे आगे जाने के लिए |एक पेड़ के नीचे दरी बिछाई  गई  और जिसे बैठना था वह  वहीं रुक गए पर हम जंगल के अन्दर घूमने निकल गए |अचानक हिरणों का एक समूह खेत में घूमता नजर आया |बच्चे अपनी थकान  भूल उनके पास पहुँचने का यत्न करने  लगे |अब वहां बैठना हुआ कठिन |एक ओर बाँध का पानी दूसरी ओर जंगली जानवर |कुछ दूर ही हाथियों का समूह नजर आया जो सरोवर की ओर जा रहा था पानी पीने उनमें दो बच्चे भी थे |
हाथियों के छोटे छोटे बच्चे बहुत सुन्दर दिख रहे थे एक घना पीपल का पेड़ था वहां से कोलाहल सुनाई दे रहा था पक्षियों का |बच्चे बेहद खुश हुए कई पक्षियों की चहचहाहट सुनकर ||अब शाम हो रही थी जल्दी से सारा सामान इकठ्ठा किया और घर की ओर चल दिए |रास्ते में खेत से ताजे भुट्टे खरीदे और घर आकर सिगड़ी पर उन्हे सेक कर सब ने खूब मजा लिया गर्मागर्म भुट्टों  का | दिन  कहाँ समाप्त हो गया मालूम ही नहीं पड़ा|



प्रगति मार्ग अवरुद्ध हुआ


 

सब ने वही किया

जो मैंने करना चाहा

किसी को टोका न गया मेरे सिवाय

यही कारण था मेरी प्रगति के अवरोध का |

जब भी मेरा उत्साह बढ़ा

घर के लोगों ने प्रोत्साहित किया

किसी से तुलना नहीं की मेरी

बाहर से ही टोका टोकी की गई थी |

आज में जिस स्थान पर खड़ा हूँ

अपने गुणों से ही वह योग्यता पाई है 

पर किसी  को तब भी सहन न हुआ

और मुझे अवमानना सहनी पड़ी |

मैंने जो हांसिल किया अपनी लगन से ही  किया

इसमें हूँ पूर्ण संतुष्ट मैं

अपनी आगे बढ़ने की चाह से नहीं दूर हूँ मैं

मुझे संतुष्टि  मिली है अपनी सफलता से |

क्या हुआ पूरी सफलता न मिल पाई  

अब डोर मिल गई है जिसका सहारा लिए हूँ

जब भी मेरी पहुँच गंतव्य तक होगी

मेरा जीवन सफल हो जाएगा |

आशा सक्सेना

 

 

23 नवंबर, 2022

आज भोर का तारा टूटा

 

आज भोर का तारा टूटा

सुबह का स्वप्न भी देखा

किस बात पर ध्यान दूं

अपने को कैसे दूं सांत्वना |

कोई कार्य तो ऐसा हो कि

मन में शंका न  हो पाए

सब कुछ आसानी  से हो

जीवन आगे बढ़ता जाए |

क्यों मेरे मन में हो शंका  ?

जीवन जितना बीता

कोई कठिनाई तो नहीं  आई

अबतक जिस का सहारा मिला

 मैं क्यूँ न जान पाई |

क्या यही अज्ञानता हुई मेरी

 मेरे लिए  सोच का कारण बनी

जितनी उस से दूरी बनाने की कोशिश  की

वह  मेरे पास खिचती आती गई |

मैं खुद को और उसको समझ न पाया

 न जाने क्यूँ खुद को उसके नजदीक पाया

यही हाल कैसे हुआ मेरा

न सोचा न ही जान पाया | 

आशा सक्सेना 

 

बंधन है किसका


 


                                                 आज तक कोई बंधन तो नहीं तोड़ा

किसी दिल ने महसूस किया हो  या  नहीं

पर मैंने बहुत गहराई से

इस बात को दिल पर लिया है |

किसी ने न स्वीकारा

जितना मन पर भार हुआ

मेरी साधना में कमीं रही या

जीवन जीना न आया  मुझे  |

हर पल न अस्वीकार किया मुझे 

कभी किसी की इच्छा पूर्ण न हो पाई

मन ने यह स्वीकार न किया

अपनी बात पर ही अड़ा रहा |

जब भी खुद में परिवर्तन  चाहा

कहीं से  अहम् ने सर उठाया

अपने को सर्व श्रेष्ठ माना

किसी के सामने नत मस्तक न  हुआ  |

फिर भी कोशिश की निरंतर

 सफलता की देखी हलकी सी झलक

मन फिर अभिमान से भरा

यहीं मैंने  खाई मात  |

 तब ईश्वर के चरण पकड़े

अपनी भूलों पर पछताई

जानती  हूँ  कितना सुधार है आवश्यक 

पर किससे सीखूं सलाह मानूं |

अभी तक कोशिश पूरी न हो पाई

पर मैंने भी हार न मानी

प्रयत्न करती रही अनवरत

हार कर भी साहस न छोड़ा |

 मेरी इच्छा शक्ति भी हुई प्रवल

यही बात मेरे मन को भाई 

कभी मैं भी सर उठाकर चल पाऊँगी

इसी  बात का संबल  मुझ  को मिला है |

जब भी मुझमें आत्म शक्ति जाग्रत होगी

समर्पण की मुझ में कमीं न होगी

यही वे पल होंगे जिनमें मैं

खुद का जीवन जी पाऊंगी |

आशा सक्सेना

22 नवंबर, 2022

झरना एक चित्रकार

 


 एक दिन एक चित्रकार घर में रहते रहते बहुत बोर हो रहा था |उसने सोचा क्यूँ न मैं जंगल में जाऊं और ऊपर जा कर झरने के पास बैठूं वही से इस झरने की रंगीन स्केच बनाऊँ |धीरे  से उसने अपनी  मम्मीं से पूंछा  वहां जाने के लिए |झरना घर से अधिक दूर नहीं था |मम्मीं ने हिदायतें दे कर जाने की इजाजत दे दी | उसने अपना सामान संचित कर जूते पहन कर झरने के उद्गम स्थल पर जाने की तैयारी करली और बड़े उत्साह से खाने के लिए थोड़ा नाश्ता ले लिया और प्रस्थान किया |

थोड़ी चढ़ाई के बाद कुछ समय विश्राम किया और फिर से चलने को तैयार हुआ |लगभग आधे घंटे के बाद ऊपर पहुंचा |उस समय सूर्य की रौशनी झरने में दिखाई पड़ रही थी |रश्मियाँ पानी में आपस में  खेल रहीं थीं |नजारा बहुत  सुन्दर दिख रहा था |उसने अपना केनवास स्टेंड पर लगाया और चित्र बनाया |सोचा घर  जाकर ही रंग भरूगा |सब सामान इकठ्ठा किया और नीचे चल दिया |झरना इतनी  तेजी से बह रहा था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था |फिर देर हो रही थी उसने  जल्दी से  कदम बढ़ाए और कुछ ही समय में घर पहुँच कर सांस ली |अब वह  रंगों से अपनी कृति को सजाने लगा |चित्र बेहद सुन्दर बना था |सब ने बहुत प्रशंसा की |

आशा सक्सेना 

21 नवंबर, 2022

दो सहेलियां

 

दो सहेलीयां

बेला और चमेली नाम की दो बालिकाएं थीं जो आपस में बहुत प्रेम  रखतीं थी एक दिन बेला के पापा उसके लिए एक सुन्दर सा फ्रोक लाए |वह  पहिन कर अपनी सहेली को दिखाने आई |चमेली के पापा की आर्थिक स्थिती तब अच्छी नहीं थी |उस  ड्रेस को  देख चमेली की आँखों में आंसू आ गए |

बेला ने कहा  लो तुम यह पहन लो तुम पर खूब सजेगी |चमेली ने उसे ले लिया पर जब पहना उसको शर्म  आई और बोली मेरे पापा कल ऐसी ही फ्रोक मुझे ला कर देंगे |किसी की कोई वस्तु देख कर उससे नहीं लेनी चाहिए |दुनिया मैं कितनी ही वस्तुएँ  हैं |हर व्यक्ति तो सब को खरीद नहीं सकता |पिता ने शांति से अपनी बेटी को समझाया |वह समझी और अपने पापा से किसी की कोई चीज न लेने का वायदा किया | अब उसका मन किसी चीज को देख कर नहीं ललचाता |उसे जो उसके पास है उसमें ही संतुष्ट है 

आशा सक्सेना