पहले फिसलना
फिर गिरना
और सम्हल कर
उठने का प्रयत्न करना |
कुछ भी नया नहीं
बड़ा सामान्य सा कार्य
बचपन में होता
आए दिन का कार्य |
जब उम्र बढ़ने लगती
हास्यप्रद स्थिति में
परिवर्तित होती गई |
बहुत कठिन होता
साधारण से कार्य का
जगजाहिर होना
किसी को हंसने का अवसर
खोजना न पड़ता |
एक दिन सड़क पर
पानी भरा था
पर पैर फिसला
गहरी चोट लगी |
उठना कठिन हुआ
पास वाले भाईसाहब ने
अपना हाथ बढाया
सम्हाल कर उठाया |
मदद तो की पर
हंसने का अवसर न छोड़ा
शरीर बहुत गोल मटोल था
उस पर ही हँसी आई |
यही बात उनने सुनाई
रस ले कर पड़ोसियों को
मन में कुंठा भरी
पर क्या करता |
आशा सक्सेना