अनजान डगर नया शहर
पैर कांपे थर थराए
पर हिम्मत से काम लिया
सारे विघ्न हटाए एक तरफ |
किसी से कब तक डर कर रहते
अपने अरमां जो सजाए मैंने
तब किसी से पूंछा नहीं था
अब दुःख हुआ अपने सोच पर |
सुख जब आया दुःख भूले
आगे बढ़ने की चाह में
अपनी हिम्मत पर भरोसा किया
तुमसे भी सलाह ली मैंने |
अब कुछ हल्का है मन
सही राह मिल गई है
है लंबा रास्ता पर
थके नहीं हैं अब तक |
यही उत्साह यदि कायम रहा
मुझे कोई हरा ना सकेगा
नया शहर रास आया है
यही क्या लाभ नहीं मुझे |
मैंने जो किया तन मन से किया
ईश्वर भी सहायक हुआ हर पल
उसने दर्शाई दया द्रष्टि
तभी सफलता का मुंह देख पाई |