24 जुलाई, 2023

मन की शान्ति

 कविता है बड़ी छोटी सी 

 अर्थ गूढ समझ से बाहर 

जब भी गहन अध्यन किया 

बड़ा आनन्द  आया |

खेल खेल में ले किताब  हाथ में 

 पढ़ने का शौक पनपा 

धीरे धीरे  बढ़ने लगा 

पर विषय वार पुस्तकों से हुई दूरी 

प्रभाव दिखने लगा 

पढाई में मन ना  लगा |

नंबरों की घटती संख्या 

ने सब को सतर्क किया 

चाहे जब डाट पड़ने लगी 

 समझ में आई अपनी गलती 

समय निर्धारण हर काम का

 नहीं किया था अब सारी पढाई

 चौपट होते दिखी

 बार बार रोका टोकी की जब सब ने 

समझ में आई अपनी भूल 

मन को क्लेश हुआ |

अब वक्त का महत्व समझा 

  फिर पढ़ने में मन लगाया 

अब किसी को कोई शिकायत नहीं है 

अपनी किताब पढने के लिए

 समय निर्धारित किया 

अब किसी को शिकायत नहीं थी 

उसे भी मन में शान्ति मिली

आशा सक्सेना 


23 जुलाई, 2023

तुमने क्यों की अपेक्षा

 

जन  मानस से क्या अपेक्षा

जब खुद ने किसी की अपेक्षा  पूर्ण ना की 

लटकाए रखा दूसरों को अधर में |

कोई किसी की मदद करे

 यह कैसे सोच लिया तुमने ,

जब खुद ने किसी की मदद ना की

 समय पर किसी के काम ना आए

 वह कैसे कह सकता है

 तब तो सोचा होता 

किसी और को भी आवश्यकता

 हो सकती होगी तुम्हारीजैसी 

लटकाए रखा तुमने उन्हें  

हाँ , ना के झुले में झूलते रहे  

  कोई निर्णय ना ले पाए

 तुम्हारी मदद यदि पक्की होती

 वे किसी और की राह नहीं देखते ,

तुमने तो उलझा दिया उनको|

आशा सक्सेना 

22 जुलाई, 2023

 

२-मेरे मन की

अब तैयारी है किताब ‘सांझ की बेला में ‘अठारावे कविता संग्रह के प्रकाशन की |जल्दी ही वह  आपके सन्मुख होगा आप ही निर्धारित करेंगे पुस्तक कैसी लगी मेरे निर्णायक आप  मेरे पाठक ही हैं|मुझे क्या लिखना है क्या नहीं आप पर निर्भर है |

लेखिका

आशा सक्सेना 

21 जुलाई, 2023

मन की डावाडोल स्थिति

एक अनोखे सोच ने 

कपकपा दिया तन मन को ऊपर से नीचे तक

मुझे मजबूर करता  सोचने को

कि मेरा वजूद क्या है ?

ना कभी किसी ने मुझे टोका ना रोका

जो मन को अच्छा लगा किया

जैसे जीना था जिया

हर बात मैं अपनी चलाई मनमानी की |

जब  तक किसी का कहना ना  माना

आगे पीछे का ना सोचा

समाज से भी दूर किया खुद को

यही सही ना किया |

किसी का प्यार पा ना सका

किसी को दिल से  अपना ना सका

किसकी गलती रही होगी

यह भी जान ना पाया |

फिर सोच उभर कर आया मेरा कसूर क्या है

लोग अपना विचार तो नहीं करते

दूसरों पर सब गलतियां थोप

चैन की सांस लेते हैं |

आशा सक्सेना 

हाईकू

१-तुम्हारी यादें 

आकर चली गईं 

का जाने कब 

२-दिल पुकारे 

तुम ना आओ 

यह कैसे हो 

३-मेरी कविता 

का सर  हीं  पाँव 

यह क्या हुआ 

४- ना तुम  याद 

नहीं नुझे बुलाओ 

यह क्या है 

५-चंचल मन 

समझ नहीं पता

 यादें किसकी 

६- अवगुण हैं 

किसमें कब तक 

उसने  जाना |

 आशा सक्सेना 


18 जुलाई, 2023

एक मित्र की खोज

 

किसी से कही मन की बात

सोचा मन हल्का हो जाएगा

और हँसी का पात्र बनी

लोगों ने पीछे से मजाक बनाया उसका|

यही बात जब जानी मन को संताप हुआ

अब सोचा किसी से कोई बात नहीं करेगी

सब को अपना नहीं समझेगी

यदि सच्चा मित्र बनाना हो कितना सोचेगी |

जितनी बार मित्र बनाया

हर बार ही धोखा खाया

पहले जांचेगी परखेगी

 तब ही उस पर भरोसा करेगी |

यही एक बात सीखी है

 उसने इस अनुभव से

अब वह  भूल नहीं करेगी

जितना हो सके उसका

 पहले परीक्षण करेगी |

जब उसमें यह सफल होगी

 तभी आगे बढ़ने की सोचेगी

तब धोखा ना  देगा देने वाला

यही एक वादा उसने खुद से किया |

अब बेफिक्र हो गई

किसी छलावे से

स्वविवेक का उपयोग करेगी

अब पीछे नहीं हटेगी  |

आशा सक्सेना 

17 जुलाई, 2023

उसने सड़क पर दौड़ लगाई

 

उसने सड़क पर दौड़ लगाई 

जल्दी पहुँचने की चाह में  

किसी से शर्त लगाई थी और वह जीती भी 

 खुशी हुई उसके मन में |

उसे   किसी से ना  बांटा  

उसको मन में छिपाए रखा 

सब ने उसे  स्वार्थी कहा

अपने तक सीमित कहा

किसी की मदद ना ले  पाई

क्या यह गलत हुआ ?

सही गलत के चक्कार मैं

वह उलझी रही खुद में

सोचने की क्षमता कम होने लगी

उसमें हीन भावना आने लगी |

 वह सम्हाल ना पाई अपने को

खुशियों से दूर हुई अनमनी और उदास हुई

नदियों की गति  सी चंचल  हुई

बहती गई बढ़ती गई बिना सोच के |

अपनी समस्या क्या है वह बता ना सकी 

अश्रु जल बह चला उसका 

 नदी के जल से मिलते ही 

नदी की गति और तेज हुई |

वह  चली बिना किसी की  रोक टोक के 

ज़रा सांत्वना मिलते ही आगे बड़ी सहस से

उसने किसी से मदद की आशा ना की 

सब को पीछे छोड़ दिया 

तभी वह  सफल हो पाई | 

आशा सक्सेना