सागर तट पर विचरण करता
यहाँ वहां घूमता फिरता
कभी जल में पैर डालता
लहरों से टकराता आनंद लेता
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मन में भय न होता जब भी
ठन्डे पानी को छूकर
मन में उत्साह जाग्रत होता
लहरों के साथ बहना चाहता |
लोगों को जल क्रीडा करते देखता
उसका मन भी होता जल में
जाने का
जब प्यास लगती पानी अंजुली
में ले कर
पीने के लिए मुंह खोलता |
स्वाद में इतना खारा होगा जल
कल्पना से दूर होता
प्यासा ही रह जाता एक भी
घूँट जल
कंठ के नीचे न उतर पाता |
वह सोचता इतने बड़े जल स्त्रोत का क्या लाभ
जब प्यास ही ना बुझ पाए
प्यासा ही रहना पड़े
फिर उसकी अच्छाई का आकलन करता
कई संपदा छिपी हुई हैं उस जल
में |
वह धरती के लिए
जल संचित करता बादल के रूप में
जब बादल बरसता झमाझम
धरती होती तर बतर जल में
भीग कर |
आशा सक्सेना