१-जीवन नैया
जल में डाली गई
आगे बहती
२-कहते रहे
यह क्या हो रहा है
किसी ने कहा
३-कविता गाई
मन में बसी रही
बड़े प्यार से
४-चतुर हुए
गीत गीत गाकर
पाई प्रशंसा
५-गुनगुनाओ
गीत मधुर लगा है
शब्द प्यारे हैं |
आशा सक्सेना
१-जीवन नैया
जल में डाली गई
आगे बहती
२-कहते रहे
यह क्या हो रहा है
किसी ने कहा
३-कविता गाई
मन में बसी रही
बड़े प्यार से
४-चतुर हुए
गीत गीत गाकर
पाई प्रशंसा
५-गुनगुनाओ
गीत मधुर लगा है
शब्द प्यारे हैं |
आशा सक्सेना
जीवन की राह हुई भूल भुलिया जैसी
जब भी कदम बढाए उसमें फँस
कर रह गई
जब भी आगे बढ़ना चाहां राह नजर
ना आई
कदम बढाए दीवार से टकराई
आगे बढ ना पाई |
बचपन में कोई कठिनाई ना थी जीवन
चलता रहा सरलता से पर
मुझे आगे के जीवन का अंदाजा
न था
जब उम्र बढी जीवन में झमेले ने रोका
जितनी कोशिश की उतनी ही उलझती
गई
भूल भुलैया से
निकलने में किसी ने मार्ग दर्शन ना दिया |
दो कदम भी ना बढे
मेरे मैं जहां थी वहीं रही
जहां से अन्दर
प्रवेश किया था वहीं खुद को खडा पाया
कुछ समय बाद अपने को वहीं पाया आगे कोई राह ना
मिली
जितना आगे बढ़ती वहां का मार्ग बंद हो जाता |
कोई सीधा मार्ग नजर ना आया
ऐसी भूल भुलैया में फँस कर रह गई
कोई सीधा मार्ग न मिला
जीवन में आगे बढ़ने की राह अवरुद्ध हुई |
आशा सक्सेना
यह काया है मकान आत्मा की
है सुन्दर अंतह पुर इसका
वाह्य आवरण प्यारा सा इसका
लोगों को ईर्ष्या होती इसका रूप देख |
जब झाँक कर देखा इसके अन्दर
और अधिक आकर्षक लगा वहां
यही आकर्षण आया ऐसा
घर छोड़ने का मन न हुआ |
एक समय ऐसा आया तन थका मन
हारा
पुराना घर छोड़ने का मन बनाया
ईश्वर से की प्रार्थना देह
छोडी
निकला नए घर की तलाश में |
जैसे ही नया धर मन के लायक मिला
फिर नया घर देखा पसंद लिया
पहुंचने की तैयारी की अब
यादें ही बाक़ी रहीं
आत्मा कभी परमात्मा से मिली
नया घर पसंद नहीं आया |
आशा सक्सेना
कभी मुझे भी उस दृष्टि से देखा होता
मुझ में और भैया में अंतर
ना किया होता
मैं भी तुम्हारी अपनी होती
दो कुल की प्यारी होती
मैं भी अपने कर्तव्य निभाती |
पूरे मन से सब के समक्ष आती
ससुराल में वही सन्मान पाती
दूसरों को दिल से अपनाती
तुम्हारा सर उन्नत होता
जब दो कुलों में प्यार बांटती |
यूँ तो कहते हो बेटी और
बेटे में
कोई भेद नहीं किया कभी तुमने
पर अब स्पष्ट दिखाई देता है
कितना अंतर है मुझ में और भैया में |
जब भी कोई बात होती मुझे
पराई कहकर
कर मन को ठेस पहुंचाई जाती
कभी पराया धन कहा जाता
कहीं मैं इस घर को भी अपना ना समझ लूं |
आई हूँ महमानों की तरह वही
हो कर रहूँ
अपनी सीमाएं नहीं भूलूँ
यही बचपन से सिखाया गया मुझको
मैंने भी अंतर को समझा मन
में सहेजा है |
आशा सक्सेना
सागर तट पर विचरण करता
यहाँ वहां घूमता फिरता
कभी जल में पैर डालता
लहरों से टकराता आनंद लेता
|
मन में भय न होता जब भी
ठन्डे पानी को छूकर
मन में उत्साह जाग्रत होता
लहरों के साथ बहना चाहता |
लोगों को जल क्रीडा करते देखता
उसका मन भी होता जल में
जाने का
जब प्यास लगती पानी अंजुली
में ले कर
पीने के लिए मुंह खोलता |
स्वाद में इतना खारा होगा जल
कल्पना से दूर होता
प्यासा ही रह जाता एक भी
घूँट जल
कंठ के नीचे न उतर पाता |
वह सोचता इतने बड़े जल स्त्रोत का क्या लाभ
जब प्यास ही ना बुझ पाए
प्यासा ही रहना पड़े
फिर उसकी अच्छाई का आकलन करता
कई संपदा छिपी हुई हैं उस जल
में |
वह धरती के लिए
जल संचित करता बादल के रूप में
जब बादल बरसता झमाझम
धरती होती तर बतर जल में
भीग कर |
आशा सक्सेना
नीलाम्बर में उड़ते बादल
पक्षियों को साथ ले कर
कहीं ठहरने का स्थान नहीं वहां
फिर भी उत्साह कम नहीं है |
आगे बढ़ने की चाह मैं
हुए व्यस्त मार्ग खोजने में
बादलों का अनुसरण करते में
हुए सफल गंतव्य तक पहुँचने में |
खुशियों की सीमा नहीं रही
वहां पहुँच कर पेड़ पर डेरा
डालने में
इस लिए ही तो रेस लगाई
बादलों संग
खुशियाँ बाहों में आईं उनके
मधुर धुन गुनगुनाई तन्मय हो
कर |
समा रंगीन हुआ वहां का
कुछ अनुभवों को जान लिया
दूसरों को भी सलाह दी अपनी
बड़ा आनद आया नए स्थान पर ठहर
कर |
आशा सक्सेना
हलके हलके ठुमके लगाओ
लहराओ झूम जाओ
जीवन में खुशियाँ भर दो
फिर से मुस्कुराओ |
अखवार में जब तस्वीर छपेगी
लोगों में प्रशस्ति बढ़ेगी
तुमको जाना जाएगा
कवि लेखक के रूप में |
हमें बहुत खुशी होगी
जब लोग तुम्हें जानेगे
तुम्हारा लेखन पहचानेगे
हमें गर्व होगा तुम्हारे
पुरस्कार पाने पर |
आशा सक्सेना