सुरमई आँखों की स्याही
फीकी पड़ गयी है
गालों पर लकीर आँसुओं की
बहुत कुछ कह रहीं हैं
ना तो है धन की कमी
ना ही कमजोर हो तुम
फिर भी घिरी हुई
कितनी समस्याओं से
क्यूँ जूझ नहीं पातीं उनसे
है ऐसा क्या जो सह रही हो
बिना बात हँसना रोना
एकाएक गुमसुम हो जाना
है कोई बात अवश्य
जिसे कह नहीं पातीं
और घुटन सहती गईं
जब सब्र का बाँध टूट गया
आँखों से बहती अश्रु धारा
तुम कहो या न कहो
कई राज खोल गई
वह समय अब बीत गया
गलत बात भी सह लेतीं थीं
प्रतिकार कभी ना करती थीं
अब तुम इतनी सक्षम हो
आगे अपने कदम बढ़ाओ
सच कहने की हिम्मत जुटाओ
उठो, जागो, अन्याय का सामना करो
आत्मविश्वास क़ी मशाल जला
पुरज़ोर प्रतिकार उसका करो
तभी तुम कुछ कर पाओगी
अपनी पहचान बना पाओगी |
आशा