तूलिका ले हाथ में
तन्मय चित्र बनाने में
था व्यस्त अपने आप में |
आहट से चौंका
चेहरे पर सवालिया भाव देख
सकुचाया ,शरमाया
फिर धीमे से मुस्काया |
बिना कुछ कहे
अपनी कृति यहीं छोड़
खेलने भाग गया
पर उत्सुकता जगा गया |
जब देखा
क्या बनाया उसने ?
बड़ा अद्भुद नजर आया
विलक्षण उसे पाया |
जितनी बार उसे देखता
जिस भी कौण से देखता
कुछ नया दिखाई देता
जो मुझे प्रेरणा देता |
बहुत सहेज कर रखा उसे
नित्य नए चित्र बनाए
मैं खोजने लगा कृतियों में
बालक की प्रतिभा को |
एक दिन वह फिर आया
अपना भाईचारा जताया
बने चित्र देखना चाहे
मैंने सारे आगे कर दिए |
हर चित्र मनोयोग से देखता
अपनी प्रतिक्रया भी देता
जैसे ही वह चित्र देखा
निशब्द ,देखता ही रह गया |
मैंने ही पूछ लिया
तुमने यह क्या बनाया ?
विशिष्ट चमक से चेहरा दमका
पर प्रतिउत्तर ना दिया |
हंसा और भाग निकला
जैसे कह रहा हो
खुद ही सोच लो
है क्या इसमें |
आशा