देखी कंचन काया
आकृष्ट हुआ
मन की आवाज ने
उकसा कर
हाल बेहाल किया
किसी से पूंछा
ये पुष्प है कहाँ का
उत्तर आया
इस जहां का नहीं
चंचल हुआ
किसी ने दी दस्तक
दरवाजे पे
पहचान हो गई
बरसों बाद
यूँही बैठे धूप में
जानना चाहा
कब मिले थे
वह भी भूली न थी
कहने लगी
जब से देखा तभी
उत्तर सुन
मन चंचल हुआ
आशा