20 मई, 2022

यादों का पिटारा




 

बरसों बरस होती

संचय की आदत सब में

यादों के रूप में

यही मेरे साथ हुआ है |

पुरानी यादों को

बहुत सहेज कर रखा है

अपनी यादों के पिटारे में

यह पिटारा जब भी खोलती हूँ

बहती  जाती हूँ

विचारों के समुन्दर में|

इससे जो सुख

दुःख  मुझे मिलता 

है इतना अनमोल कि

उसको किसी से बांटने का

मन नहीं  होता  |

बचपन की मीठी यादे मुझे ले जाती उस बीते कल में

वे लम्हे कब बीत गए

पिटारा भरने लगा |

जब योवन में कदम रखा

  समस्याओं से घिरी रही

 वे दिन भी यादों में ताजे है |

धीरे से समय कब बीता

जीवन में आया स्थाईत्व

सब याद रहा एक तस्वीर सा

अब बानप्रस्थ की बारी आई |

  जिम्मेंदारी में उलझी

एक एक लम्हां कैसे कटा

सब है याद मुझे  |

जीवन की संध्या में यही माया मोह

 मेरा पीछ नहीं छोड़ता कैसे दुनियादारी से बचूं |

कीं जैसे ही ऊंची उड़ान की कल्पना  

 मन के पंख कटे  

ठोस धरातल पर आई |  

आस्था की ओर कुछ  झुकाव हुआ है

यही है सार मनोभावों का जो मैंने छिपाए रखा है

यादों के पिटारे में  |

आशा  

19 मई, 2022

क्षणिकाएं

 

१-मैंने तो सच कहा है

लागलपेट उसमें ना कोई

इस पर भी यदि बुरा मानो

सोच लेंगे कुछ हुआ ही नहीं|

 

२-तुम हो हो धीर गंभीर जलधि जैसे

वह है चचल चपल बिजुरिसा सी

 बेमेल मिलन हुआ कैसे

वह सोच न पाई गंभीरता से |

 ३-अल्लाह कहो या राम रहीम 

किसी भी  पुस्तक में

नहीं  लिखा है  ये है भिन्न भिन्न

 अलग नहीं सब एक हैं दुनिया के तारक

 जगत  के पालनहार प्रकृती के संचालक |

४-, पर्यावरण आसपास का और हरियाली

नदी समुन्दर चाँद  सितारे वायु  धरा   

 सूर्य देव के बिना हैं असम्भव

अन्य गृह सौर मंडल के लगते  आकर्षक दूर से

 |ख्याली पुलाव बनाने से क्या फाय्दा

                      यदि सच में उसे बनाया होता तब और बात होती

जिन्दगी तो तनिक ठहर भी  जाती पर

तुम तारीफ की हकदार होतीं |

आशा 

18 मई, 2022

परिवार दिवस

                                                                 


                                                               पहले कहा जाता था 

हो परिवार  भरा पूरा

फिर कहा जाने लगा

हम दो हमारे दो |

 कभी किसीने न जाना

है महत्व इसका  क्या

अब मनने  लगा

विश्व परिवार दिवस |

जब अति जनसंख्या की हुई

और सीमित संसाधन  हुए 

घबराए  लोग जन संख्या बढ़ने से

वही विचार मन में आया

सीमित परिवार सुखी संपन्न  |

यह बात बारम्बार  दोहराई जाती

हो परिवार भरा पूरा

कभी यह बात कही जाती

छोटा परिवार ही सबसे अच्छा |

वह परिवार है सबसे अच्छा

बड़ा परिवार हो  या सीमित 

 जहां तालमेल हो आपस में

घर में खुशहाली हो

हों सभी एक मत विचारों में |

वह घर  स्वर्ग हो जाता

जहां  परिवार की बेल फले फूले

परिवार दिवस मनाना न पड़ता

सामंजस्य जब होता घर में |

16 मई, 2022

देश के रखवाले



तुम सपूत भारत के रखवाले अपने घरवार से बिछड़े 

 यह साहसिक कदम उठाया 

 परवाह न की कभी दीन दुनिया की 

देश हित में रमें अपनी जान जोखिम में डाली |

 कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आईं  

हिम्मत कभी न हारी

 कर्तव्य से पीछे न हटे

 घरवार  प्रभु के भरोसे किया |

कर्तव्य पर हुए न्योछावर 

देश को है गर्व है

 उन  वीर सपूतों पर 

जिनने दी कुर्वानी देश के लिए 

जात पात का बंधन न माना

किया न्योछावर देश पर  खुद को |

धर्म ने कभी न बांटा एक बात याद रही

प्रथम कर्तव्य से बंधे हैं बाक़ी सब गौण

एक साथ मिल जुलकर रहे सीमा पर 

 हम हैं हिन्दुस्तान के रखवाले |

आशा

14 मई, 2022

हाइकु

 



                    कसमें वादे

                   जब भूलें भुलाएं

                    याद न आएं

 

तेरी कसम

यदि वो ना समझी

बेवफा हुई

 

खाओ कसम

 झूठ  नहीं बोलोगे

धोखा न दोगे

 

पक्के वादों के

कभी न पकड़ोगे

गलत राह

 

मध्य प्रदेश

है दिल भारत का

र्व है मुझे 

हम सिपाही

प्रदेश की सीमा के

रक्षा करते

 

क्षणिक नहीं

 यह आवेग नहीं

उत्साह भरा  

 

अभिनव है

प्रयोग जीवन में

सफलता के

 

जीवन नहीं

र्व है मुझे

कोई परिवर्तन

 खेल नहीं है



10 मई, 2022

कुछ तुम बदलो कुछ मैं

 

 




कुछ तुम बदलो कुछ मैं  

तब सामंजस्य बना रहेगा हम दौनो के  बीच

व्यर्थ का तर्क कुतर्क

अशान्त नहीं करेगा अपने जीवन को |

स्पष्ट संभाषण है जरूरी

जीवन की गाड़ी चलाने में

किसी के कहने से

 कुछ नहीं बदलेगा

चाहे पूंछ लो जमाने से |

अपने गिरह्वान में झांको

अपनी कमियां स्वीकारो

उनका एहसास करो  

कुछ मुझे भी समय दो सोचने का |

यदि यही बात समझ पाओगे

जीवन जीने की कला आ जाएगी

महक जिन्दगी में होगी

बेनूर जिन्दगानी  ना होगी |

किसी की सलाह पर 

कब तक चलोगे 

जहां से चलना था वहीं ठहर जाओगे 

जिन्दगी में आगे न बढ़ पाओगे |  

आशा  

 

08 मई, 2022

मेरी माँ

 

माँ तुम्हारी ममता ने

प्यार दुलार ने सुख दुःख में

सर हाथ से सहलाना

मैं आज तक भुला नहीं पाई |

बचपन में जब भी जरासी

तबियत बिगड़ जाती थी

खुद खाना पीना छोड़

मुझे सम्हालती रहती थीं |

कभी डाटा नहीं सिर्फ समझाया 

मुझे मिला संबल जब प्यार से समझाया

कभी उदास न होने दिया

ना ही कोई कमीं रखी

चाहे कितनी ही कठिनाई आई

 मैंने तुम्हारे आँचल में शरण पाई |

जब बचपन में शरारत करती थी

तुम्ही मुझे प्यार से समझातीं थी

धूल धूसरित घर आती

 तब जरूर डाट खाती थी

जान जाती थी  गलती अपनी |

तुमने जानी मेरी क्या थी समस्या

 खुद ने अपना सारा जीवन  किया

 निसार उचित अनुचित का ज्ञान दिया

 हर कदम पर ध्यान दिया |

मार्ग दर्शक तुम्हे बनाया  

सबल सफल व्यक्तित्व जो आज है

है  तुम्हारी  ही देन  

पहले नहीं थी समझ मुझे

 जब माँ बनी तब 

माँ का जीवन देखा 

अब समझ आया |

 मेरी माँ सब से अच्छी

इस दुनिया में

हर सफलता है देन तुम्हारी 

अब मेरी समझ में आया |

आशा