१-कितने स्वप्न
देखे हैं दिन ही मैं
समझ आई
२-ये सपने भी
कभी खोते जाते हैं
नहीं मिलते
३-जानते नहीं
उलझाते रहे है
बचाओ मुझे
४-प्यार से बंधे
इतने मजबूत
उसे जकडे
५-तेरा प्यारहै
इतना नाजुक कि
मोम जैसा है
आशा सक्सेना
१-कितने स्वप्न
देखे हैं दिन ही मैं
समझ आई
२-ये सपने भी
कभी खोते जाते हैं
नहीं मिलते
३-जानते नहीं
उलझाते रहे है
बचाओ मुझे
४-प्यार से बंधे
इतने मजबूत
उसे जकडे
५-तेरा प्यारहै
इतना नाजुक कि
मोम जैसा है
आशा सक्सेना
कभी ख़ुशी कभी गम
आए दिन की बात है
मैं सोच नहीं पाती |
की फरमाइशें बच्चों ने
जिनको पूरा कर न सके
पत्नी की उदासी में
सारा दिन हुआ बर्बाद |
मन को इतना कष्ट हुआ
तुम् सह नहीं पाओगे
सोचोगे कैसे जीवन जिया जाए
वह तो मुझे ही जीना है|
मै किस तरह जीता हूँ
किसी से कह भी नहीं सकता
सोच रहा हूँ कहीं दूर चला
जाऊं
वहीं से नौकरी करूकुछ मदद करू
और कोई विकल्प नहीं मेरे
पास |
आशा सक्सेना
जीवन एक पेड़ जैसा
पहले पत्ते निकलते
फिर डालियाँ हरी भरी होतीं
वायु के संग खेलतीं
धीरे धीरे कक्ष से
कलियाँ निकलतीं
पहले तो वे हरी होतीं
फिर समय पा कर
खिलने लगतीं तितली आती
इन से छेड़छाड़ करतीं
भ्रमर भी पीछे ना
वे प्यार में ऐसे खो जाते
पुष्प की गोद में सिमट रहते
जब तक संतुष्टि ना हो
वहीं सो रहते
मन भर जाते ही अपनी राह
लेते
इन तीनों का खेल देखने
में
बड़ा मनोरम लगता
हरी डाल पर रंगीन पुष्प अद्भुद
द्रश्य होता |
आशा अक्सेना
इस संसार में अनेक जीव रहते
अपना जीवन व्यापन करते
एक दूसरे को अपना भोजन
बनाते
बड़े का वर्चस्व होता छोटे
पर
इसी लीक पर चल रहा
आज का समाज
ताकतवर से कोई
जीत नहीं पाता
सदा उसके ही गीत गाता
उसके अनुरूप चलती
मन में सोचता कब तक गुलामी
सहेगा
ईश्वर ने किस बात की सजा दी
है
उसका अस्तित्व कैसे दबा दबा
रहेगा
अब तो ऐसे वातावरण में
जीने का मन नहीं होता
सोचता रहा कैसे भव सागर
पार करू
दूसरा किनारा देख मन मुदित
होता
जैसे ही प्रहार लहर का होता
वह जल में वह विलीन हो जाता |
बाँसुरी ली हाथ बन मैं बजाई
मधुर धुन जब सुनी ग्वालों ने
दौड़े चले आए वहां पर |
धेनु चराई शाम तक
घर को चले थके हारे ग्वाले
गायों को भी भूख लगी थी
घर पर दाना पानी का प्रवंध किया
राधाने नाराजगी जताई
रूठी रहीं बात न की
कड़ी धुप में तुम मुरझा जातीं
तुम क्या जानो ठंडी हवा में
वन में घूमने का आनंद
कृष्ण ने समझाया
कल ले चलने का वादा किया
तब जाके मन पाईं राधा |
आशा सक्सेना |
मां ने दुलारा बहुत प्यार किया
पर गलत बात पर बरजा
मुझे अपनी गलती का एहसास कराया
हर बात कायदे की सिखाई |
कभी न हो अधीर रहो धैर्य से
यही शिक्षा दी माँ ने
जिसने किया अलग
मुझको सब से |
ज ब रोना गाना मचाया मैंने
गोद में ले कर समझाया मुझे
शांत मन रहने को कहा |
इतनी शिक्षा दी मुझे
तभी तो प्रथम गुरुं कहलाई
|है मेरी माँ सब से अलग
उस जैसा कोई नहीं है|
सदा उसकी छाया में रहूँ
दिल मेरा यही चाहता
प्रथम गुरुं को मेरा दिल से प्रणाम
यही मेरा मन कहता |
आशा सक्सेना
बड़ा सा दरवाजा था
लोग ठहर जाते थे
उसकी भव्यता देख |
आज है वीरान उजड़ा
सारी रौनक तिरोहित हो गई है
काली गाय दिखाई नहीं देती
नाही पीली कुत्ती का ठिकाना |
वे क्यों ठहरते अब कोई उनकी
परवाह नहीं करता
नाही लाड दुलार करता
ना समय पर खाना देता |
अंदर झाँक कर देखा
वस्तुएं सभी उथल पुथल
कोई देखता तो समझता
है कितना कठिन अकेले जीना |
दरवाजे पर एक बुजुर्ग बैठे खांस रहे थे
अकेले जीवन ढो रहे थे
एक भी व्यक्ति ऐसा ना था
जो सुख दुःख का साथी होता |
भर आईं मेरी आँखे
घर के ये हाल देख
सोचा जाकर याद दिलाऊँ
मैं अब आ गई हूँ कहीं नही जाऊंगी |
मैंने भी जमाने की ठोकरे खाई है
यहां तक आते आते
कितनी कठिनाई झेली हैं
शायद मेरे प्रारब्ध में यही लिखा था |
अब सीधी राह मिल पाई है
मुझे ख़ुशी है मै ठीक से आ गई हूँ
अपने जीवन के प्रांगन मै
अब कोई गलत राह ना पकडूगी|
आधा जीवन तो बीत गया
थोडा सा अभी बाक़ी है
उसे हरी नाम ले बिताऊँगी
अपना जीवन सफल करूंगी |
आशा सक्सेना