03 अगस्त, 2011

कोइ पूर्ण नहीं होता


जब से सुना उसके बारे में
कई कल्पनाएँ जाग्रत हुईं
जैसे ही देखा उसे
लगी आकर्षक प्रतिमा सी |
था चंद्र सा लावण्य मुख पर
थी सजी सजाई गुडिया सी
आँखें थीं चंचल हिरनी सी
और चाल चंचला बिजली सी |
काले केश घनघोर घटा से
लहराते चहरे पर आते
प्रकाश पुंज सा गोरा रंग
लगी स्वर्ग की अप्सरा सी |
उसकी सुंदरता और निखार
और आकर्षण ब्यक्तित्व का
सम्मोहित करता
लगता प्रतीक सौंदर्य का |
जैसे ही निकली समीप से
उसके स्वर कानों में पड़े
उनकी कटुता से
सारा मोह भंग हो गया |
वह सोचने को बाध्य हुआ
कहीं न कहीं
कुछ तो कमी रह ही जाती है
कोइ पूर्ण नहीं होता |
आशा

01 अगस्त, 2011

तुम कैसे जानोगे


है प्यार क्या
उसका अहसास क्या
तुम कैसे जानोगे
जब तुमने किसी से
प्यार किया ही नहीं |
पिंजरे में बंद पक्षी की वेदना
कैसे पहचानोगे
जब तुमने ऐसा जीवन
कभी जिया ही नहीं |
उन्मुक्त पवन सा बहना भी
तुम समझ ना पाओगे
क्यूँ कि
ए .सी .कमरे की हवा में
जिसमें पूरा दिन बिताते हो
उस जैसा प्रवाह कहाँ |
बाह्य आडम्बरों में लिप्त तुम
भावनाएं किसी की
कैसे समझोगे
हो प्रकृति से दूर बहुत
आधुनिकता की दौड़ में
सबको पीछे छोड़आए हो |
प्यार और दैहिक भूख
के अंतर को
कैसे जान पाओगे
जब सात्विक प्यार के
अहसास को
दिल से न लगाओगे |

आशा

31 जुलाई, 2011

सुख दुःख तो आते जाते हैं


होता रहता परिवर्तन
कभी खुशी सुख देती
कभी अहसास होता
दर्दे दुःख का |
क्या है यह सब
मन बावरा जान नहीं पाता
आती खुशी पल भर को
फिर से गहन उदासी छाती
होता नहीं नियंत्रण मन पर
ना ही कोइ बंधन उस पर
होता हर बार कुछ नया
जो स्वीकार्य तक नहीं होता
मन जिधर झुकता
वह भी झुकता जाता |
जैसा वह चाहे होता है वही |
दे दोष किसे
इस अस्थिरता के लिए
अजीब प्रकृति है
विचलन नहीं थमता |
जाने क्यूँ मन चंचल
ठहराव नहीं चाहता
है वह झूले सा
कभी ऊंचाई छूता
कभी नीचे आता |
भूले भटके जब भी
तटस्थ भाव जाग्रत होता
तभी लगता
सुख दुःख तो आते रहते 
अनेक रंग जीवन के
हैं अभिन्न अंग उसके |
आशा



29 जुलाई, 2011

भय


हूँ भया क्रांत
और जान सांसत में
कोइ आहट नहीं
फिर भी घबराहट
तनी है भय की चादर
आस पास |
इससे मुक्त होने के लिए
अनेकों यत्न किये
पीछा फिर भी
न छूट पाया |
अब तो लगता है
यह है उपज मन की
दबे पाँव आ जाता है
छा जाता मन
मस्तिष्क पर |
कुछ करने की
इच्छा नहीं होती
फिर से लिपट जाता हूँ
उसी चादर में
भय के आगोश में |
ओर खोजता रहता हूँ
वास्तविकता उसकी
जानना चाहता हूँ
है सत्य क्या उसकी |

आशा



27 जुलाई, 2011

छलकने लगा प्यार


भवें लगती कमान
नयनों के सैन बाण ,
निशाना भी है कमाल
यूँ ही व्यर्थ जाए ना |

पानी व दर्प उसका
लगता सच्चे मोती सा ,
बिना प्रीतम से मिले
चैन उसे आए ना |

प्रिय मिलन की आस
लगी लौ हुई बेहाल ,
विचित्र हाल मन का
पर बतलाए ना |

मिला जब मीत आज
खुशी का ना कोइ नाप ,
छलकने लगा प्यार
समेटा भी जाए ना |

आशा

25 जुलाई, 2011

वह चली गयी


घने वृक्षों के झुरमुट में
शाम ढले एकांत में
रोज मिला करते थे
कुछ अपनी कहते
कुछ उसकी सुनते थे |
जाने कितने वादे होते थे
वह इकरार हमेशा करती थी
बहुत अधिक चाहती थी
कहती रहती थी अक्सर
तुम यदि चले गए
नितांत अकेली हो जाउंगी
फिर किस के लिए जियूंगी
किसकी हो कर रहूंगी |
काफी समय बीत गया
यही सिलसिला चलता रहा
अब व्यवधान आने लगे
रोज होती मुलाकातों में
कुछ बदलाव भी नजर आया
उसकी चंचल चितवन में |
जब भी जानना चाहा
वह टाल गयी
मुस्कुराई नज़र झुकाई
बात आई गयी हो गयी |
जो आग दिल में लगी
क्या मन में उसके भी थी
क्या वह भी सोचती थी ऐसा
वह सोचता ही रह गया
वह तो चली गयी
किसी और की हो गयी
देख कर बेवफाई उसकी
ग़मगीन विचारों में लींन
वह अकेला ही रह गया |

आशा





23 जुलाई, 2011

विश्वास किस पर करें




है दिखावे से भरपूर दुनिया
कुछ स्पष्ट
 नजर नहीं आता
अतिवादी अक्सर मिलते हैं
कोइ तथ्य नजर नहीं आता
आँखें तक धोखा खा जाती हैं
अंजाम नजर नहीं आता |
जो दिखाई देता है
कभी सत्य 
तो कभी असत्य रहता 
जो कुछ सुनते हैं
उस पर विश्वास करें कैसे
आखों देखी कानों सुनी
बातों पर भी
विश्वास नहीं होता |
समाचार पत्रों के आलेख भी
अक्सर होते एक पक्षीय
और अति रंजित
जानकारी निष्पक्ष कम ही देते हैं
आक्षेप एक दूसरे पर
और छींटाकशी
इसके सिवाय और कुछ नहीं |
हैं जाने कैसे वे लोग
कितनी ही कसमें खाईं
वादे किये कसमें दिलाईं
पर उन पर भी 
खरे नहीं उतारे
विश्वास किस पर कैसे करें
यह तक स्पष्ट नहीं है 
आँखें धुंधला गईं हैं
शब्द मौन हैं
वहाँ  भी भ्रम ही 
  नजर आता है|
है यह कैसा चलन
आम जनता की
कोइ आवाज नहीं है
हर ओर दिखावा होता है
सत्य कुछ और होता है

आशा