07 मार्च, 2012

देखी एक समानता

नेता है आज का
स्वभाव भी बड़ा अनोखा
कभी हारता कभी जीतता
वर्चस्व की लड़ाई में
फिर भी कोइ
 शिकन न दिखती चेहरे पर
ना ही ग्लानि मन में
हार का मुंह देख कर |
देखी एक समानता
अभिनेता और  नेता में
अपने अपने चरित्र में
दौनों के खो जाने की
फिर भी एक विसंगति
दिखती चरित्र को जीने में |
अभिनेता खो जाता चरित्र में
मन से वही पात्र जीता
सजीव उसे बना कर रहता
पर नेता में कुछ न बदलता
ना ही  चिंता ना स्पंदित
था जैसा वही बना रहता
कोइ जीते कोइ हारे
फर्क उसे नहीं पडता
रहता हरदम  व्यस्त
अपना घर भरने में |
आशा


05 मार्च, 2012

चंद अल्फाज़ चाहिए

चंद अल्फाज़ चाहिए 
हालेदिल बयां करने को
है तलाश सुर की 
हृदय को टटोलने को
साजिन्दे तो मिल ही जाएगे 
संगत के लिए 
पैर भी थिरकने लगेंगे 
धुन पर संगीत के 
पर खोजती हूँ वह कौना 
एक  ऐसे मन का 
जहां कुछ देर ठहर पाऊं 
बातें अपने दिल की 
सांझा कर पाऊं
चुने हुए अल्फाजों में 
कुछ उसकी सुनूं 
कुछ अपनी कहूँ 
साँसें बोझिल ना रह जाएँ 
अपना मन हल्का कर पाऊं 
उसकी पनाह नें |
आशा

03 मार्च, 2012

होली के रंग



होली पर दोहे 
गहरे रंगों में रंगी ,भीगा सारा अंग |
एक रंग ऐसा लगा ,छोड़ ना पाई संग ||

विजया सर चढ़ बोली ,तन मन हुआ अनंग |
चंग संग थिरके कदम ,उठने लगी तरंग ||

कह डाली बात मन की, ओ मेरे ढोलना |
तेरे प्यार में रंगी ,यह भेद न खोलना ||
चल खेलें फाग

रंग रसिया चल खेलें फाग
होली का रंग जमालें
लठ्ठ मार होली खेलें
हो सके तो  खुद को बचाले |
रसिया के रंग में डूबी
वह खेल रही होली
मुखड़े पर जब लगा  गुलाल
वह एक शब्द ना बोली|
मौन स्वीकृति जान उसने
अपने पास बुलाया
अनुराग  भरा गुलाल लगा
उसे अपने गले लगाया|
दूर हुए गिले शिकवे
वह प्रेम रंग में डूबी
अपने प्रियतम के संग
आज  खेल रही होली |
आशा





01 मार्च, 2012

बहुत देर हो चुकी थी

खेलते बच्चे मेरे घर के सामने
करते शरारत शोर मचाते
पर भोले मन के
उनमें ही ईश्वर दीखता
बड़े नादाँ नजर आते
दिल के करीब आते जाते
निगाह पड़ी पालकों पर
दिखे उदास थके हारे
हर दम रहते व्यस्त
बच्चों के लालनपालन में
रहते इतनी उलझनों में
खुद को भी समय न दे पाते
फिर देखा एक और सत्य
बड़े होते ही उड़ने लगते
भूलते जाते बड़ों को
उनके प्रति कर्तव्यों को
कई बार विचार किया
फिर निश्चय किया
कोइ संतान ना चाहेंगे
बस यूँ ही खुश रह लेंगे
पर आज मैं और वह
जी रहे नीरस जीवन
ना चहलपहल ना रौनक घर में
आसपास फैली उदासी
अब लग रहा निर्णय गलत
जो पहले हमने लिया था
बच्चे तो हैं घर की रौनक
है आवश्यक उनका भी होना
घर है उनके बिना अधूरा
पर जब तक
आवश्यकता समझी
बहुत देर हो चुकी थी |
\आशा



27 फ़रवरी, 2012

देखे विहग व्योम में


देखे विहग व्योम में उड़ते
लहराती रेखा से
थे अनुशासित इतने
ज़रा न इधर उधर होते
प्रथम दिवस का  दृश्य
 हुआ साकार फिर से
 यह क्रम  रोज सुबह रहता
होते ही प्रातः बढ़ते कदम
खुले आकाश के नीचे
यही मंजर देखने के लिए 
अब तो नियम सा हो गया
उन्हें देखने का
ना होता कोइ दिग्भ्रमित
ना ही  बाहर  रेखा से
अग्र पंक्ति का पीछा करते
कतार बद्ध आगे बढ़ते
हुआ विस्मय यह देख
समय तक निश्चित उनका
मोल समय का जानते
उसे साध कर चलते
गति थी एकसी सबकी
लगता था क्रम तक निश्चित
शायद उनसे ही सीखा हो
कदम ताल करना
अग्र पंक्ति से कदम मिला कर
दूर तक जाना
हो स्वअनुशासित परेड में 
एक ताल पर चलना |
आशा

25 फ़रवरी, 2012

भूली सारे राग रंग


भूली सारे राग रंग 
पड़ते  ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही वास्ता
 दिन पहले रंगीन
 हुआ करते थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी नहीं
जो पहले हुआ करता था
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ दिया
और कूद पडी अग्नी  में
सत्य की परिक्षा के लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
 अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
बाती जिसकी घटती जाती
कसमसाती बुझने के लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा





22 फ़रवरी, 2012

ऋतु फागुन की


आई मदमाती ऋतु
फागुन की
चली फागुनी बयार
वृक्षों ने किया श्रृंगार
हरे पीले वसन पहन
झूमते बयार संग
थाप पर चांग की
थिरकते कदम
फाग की मधुर धुन
कानों में घुलती जाए
पिचकारी में रंग भर
लिए साथ अबीर  गुलाल
रंग खेलते बालवृंद
उत्साह और खुशी
छलक छलक जाए
प्रियतम के रंग में डूबी
भीगी चूनर गौरी की
गोरे गालों की लाली
कुछ कहती नजर आए
उसके नयनों की भाषा
कानों में झुमकों की हाला
भीगा तन मन
वह विभोर हुई जाए |
आशा