14 जून, 2012
12 जून, 2012
मार मंहगाई की
सारी रंगत गुम हो गयी
कारण किसे बताए
मंहगाई असीम हो गयी
सारा राशन हुआ समाप्त
मुंह चिढाया डिब्बों ने
पैसों का डिब्बा भी खाली
उधारी भी कितनी करती
वह कैसे घर चलाए
बदहाली से छूट पाए
मंहगाई का यह आलम
जाने कहाँ ले जाएगा
और न जाने कितने
रंग दिखाएगा
दामों की सीमा पार हुई
कुछ भी सस्ता नहीं
पेट्रोल की कीमत बढ़ी
कीमतें और बढानें लगीं
है यह ऐसी समस्या
सुरसा सा मुंह है इसका
थमने का नाम नहीं लेती
और विकृत होती जाती
इससे कैसे जूझ पाएगी
मन को कितना समझाएगी
किसी की छोटी सी फरमाइश भी
दिल को छलनी कर जाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
आशा
10 जून, 2012
प्रेम और प्यार
प्यार और प्रेम में
हैं पर्याय एक दूसरे के
या अर्थ भिन्न उनके
इहिलौकिक या पारलौकिक
आत्मिक या भौतिक
या ऐसी भावनाएं
जो भ्रम में डुबोए रखें
ये हैं पत्थर पर पड़ी लकीरें
जो मिटना नहीं चाहतीं
और मिट भी नहीं सकतीं
चाहे जो परिवर्तन आए
या बदलाव नहीं आए
या बदलाव नहीं आए
अनेक विचार कई तर्क
संबद्ध हुए इनसे
यदि गहन चिंतन करें
भावनाएं प्रवल दिखाई देतीं
बढते दुःख की पराकाष्ठा
जब भी मन को छू जाती
अन्धकार में
जलते दिए की एक किरण
दिखाई तब भी दे जाती
दिखाई तब भी दे जाती
उसी ओर मैं खिंचता जाता
इसे ही सुखद संकेत मान
प्यार लिए उसका ह्रदय में
आगे को बढता जाता
शायद यही प्रेम है
या प्यार मेरा उसके लिए
या प्यार मेरा उसके लिए
मैं उसे प्यार करता हूँ
क्यूँ कि है वह देश मेरा |
क्यूँ कि है वह देश मेरा |
08 जून, 2012
है नई डगर
सभी कुछ नया
कोई अपना नजर नहीं आता
जो भी पहले देखा सीखा
सब पीछे छूट गया
हैं यादें ही साथ
पर इसका मलाल नहीं
रीति रिवाज सभी भिन्न
नई सी हर बात
अब तक रच बस नहीं पाई
फिर भी अपनी सारी इच्छाएं
दर किनारे कर आई
जाने कब अहसास
अपनेपन का होगा
परिवर्तन जाने कब होगा
अभी तो है सभी अनिश्चित
इस डगर पर चलने के लिए
कई परीक्षाएं देनीं हैं
मन पर रखना है अंकुश
तभी तो कोई कौना यहाँ का
हो पाएगा सुरक्षित
जब सब को अपना लेगी
सफल तभी हो पाएगी
है यह इतना सरल भी नहीं
पर वह जान गयी है
हार यदि मान बैठी
लंबी पारी जीवन की
कैसे खेल पाएगी |
आशा
06 जून, 2012
निडर
हो निडर घूम रही
जंगल की पनाह में
आवाज से दहशत भरती
लोगों के दिलों में
पर क्या वह माँ नहीं
उसे ममता का
लेशमात्र भी अहसास नहीं ?
पर ऐसा कुछ नहीं
हैं ममता के रूप अनेक
हैं ममता के रूप अनेक
वह भी है सतर्क माँ
सहेज रही अपने बच्चों को
सचेत कर रही उन्हें
आने वाले खतरों से
वह जानती है अभी छोटे हैं
दुनिया की रीत नहीं जानते
यहाँ के रास्ते नहीं पहचानते
यदि इधर उधर भटक गए
सुरक्षा होगी कठिन
शायद इसी लिए
साथ लिए फिरती है
यदि कोई अंदेशा हो
सचेत उन्हें करती है |
आशा
आशा
04 जून, 2012
है वह कौन
हूँ एक अनगढ़ खिलोना
बनाया सवारा बुद्धि दी
किसी अज्ञात शक्ति ने
पर स्वतंत्र न होने दिया
बुद्धि जहाँ हांक ले गयी
उस ओर ही खिंचता गया
राह की बाधाओं से
पार पाने के लिए
सफलता और असफलताओं के
बीच ही झूलता रहा
जीवन के रंग उन्हें मान
बढता जा रहा हूँ
अंधकार में डूबा
उन्हें नहीं मानता
प्रकाश की खोज में
अग्रसर होना चाहता
है वह कौन
जो संचालित करती मुझे
उसे ही खोज रहा हूँ
हर कठिन वार सह कर भी
बचता रहा हर बार
जीना चाहता हूँ
क्यूं कि हूँ मनुष्य
वही बना रहना चाहता हूँ |
आशा
01 जून, 2012
यादें भर शेष रहा गईं
सपनों की चंचलता बहुत कुछ
सागर की उर्मियों सी
भुला न पाई उन्हें
कोशिश भी तो नहीं की |
बार बार उनका आना
हर बार कोई संदेशा लाना
मुझे बहा ले जाता
किसी अनजान दुनिया में |
उसी दुनिया में जीने
की ललक
बढ़ने लगती ले जाती वहीँ
अचानक एक ठहराव आया
मन के गहरे सागर
में |
फिर चली सर्द हवा
उर्मियों ने सर उठाया
आगे बढ़ीं टकराईं
पर हो हताश लौट आईं |
यह ठहराव बदल गया
समूंचे जीवन की राह
अब न कोई स्वप्न रहे
ना ही कभी याद आए |
भौतिक जीवन की
जिजीविषा की
बेरंग होते जीवन की
यादें भर शेष रह गईं |
आशा
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