तम और अधिक गहराता
गैरों सा व्यवहार उसका
जीवन बेरंग कर जाता
कोई अपना नहीं लगता
जीना बेमतलब लगता
जब कोई साथ नहीं देता
मन में कुंठाएं उपजाता
खुशी जब चेहरे पर होती
सहना भी उसे
मुश्किल होता
यही परायापन यही बेरुखी
अंदर तक सालती
लगती अकारथ जिंदगी
उदासी घर कर जाती
घुटन इतनी बढ़ जाती
व्यर्थ जिंदगी लगने लगती
जाने कब तक ढोना है
इस भार सी जिंदगी को
निराशा के गर्त में फंसी
इस बेमकसद जिंदगी को |
आशा