मकसद तो हो
अपनेपन का कहीं
ख्याल तो हो
सरल होता तभी
जीवन का सफर
जब सोच का कोई
कारण तो हो |
प्रीत की है रीत यही
सुहावनी ऋतु हो
प्यार की छाँव के लिए
एक दामन तो हो |
अपनी सोच पर खुद को
कभी मलाल न हो
ओस से भीगी रात हो
उदासी का आलम न हो
गुनगुनाया नवगीत
हो कर मगन
स्वप्न में बुना
नया शाल पहन
तभी हुई दस्तक
खोले पट स्वप्न से
बाहर निकल
पैर पड़े अब धरती पर
झूम कर आई महक
जानी पहचानी अपनी सी
दिल बाग़ बाग़ हुआ
मकसद गुनगुनाने का
अधूरा न रहा
जीवन के सफर में
कोई हमसफर मिला |
आशा
गुनगुनाया नवगीत
हो कर मगन
स्वप्न में बुना
नया शाल पहन
तभी हुई दस्तक
खोले पट स्वप्न से
बाहर निकल
पैर पड़े अब धरती पर
झूम कर आई महक
जानी पहचानी अपनी सी
दिल बाग़ बाग़ हुआ
मकसद गुनगुनाने का
अधूरा न रहा
जीवन के सफर में
कोई हमसफर मिला |
आशा