31 जुलाई, 2013

घर मेरा



घर मेरा गाँव में छोटा सा
पर आँगन उसमें बहुत बड़ा
पेड़ लगे नीम आम के
अमलताश और जामुन के |
तुलसी चौरे पर लहराती
दीप जला पूजी जाती
अपूर्व शान्ति मन में आती 
शाम ढले उस आँगन में |
पंछी आते जाते रहते
मींठी तान सुनाते रहते
सावन आया वर्षा आई
दिग्दिगंत हरियाली छाई |
अमवा पर झूला डलवाया
माँ से लहरिया रंगवाया
पहन उसे खुशी से झूमीं
सखियों के संग जी भर झूली |
बारिश में चूनर भीगी
तन भीगा मन भी भीगा
यूं ही सारा दिन बीत गया
तुझे न आना था ना आया |
तेरा मेरा जन्मों  का नाता
यह भी शायद भूल गया
मेरी आँखें भर भर आईं
यदि आ जाता तो क्या जाता ?
आशा

25 जुलाई, 2013

हाँ या नां




कभी हाँ तो कभी ना
क्या समझूं इसे
उलझी हुई हूँ
गुत्थी को सुलझाने में |
यूं तो मुंह से
 हाँ होती नहीं
लवों पर ना ही ना रहती
 पर होती हल्की सी जुम्बिश
लहराती जुल्फों  में
आरज़ू अवश्य रहती
कि ना को भी कोइ हाँ समझे
उलझी लट  सुलझाए
प्यार का अहसास समझे
ना को भी हाँ समझ
नयनों की भाषा समझे
मन में उतरता जाए | 
आशा








23 जुलाई, 2013

बागे वफ़ा



आज न जाने क्यूं ?
बागेवफ़ा वीरान नज़र आता
बेवफ़ा कई दीखते
पर बावफ़ा का पता न होता
चन्द लोग ही ऐसे हैं
जो दौनों में फर्क समझते
जज्बातों की कद्र करते
गलत सही पहचानते
आगे तभी  कदम बढ़ाते
हमराज  बन साथ होते
कुछ ही वादे करते
बड़ी शिद्दत से जिन्हें निभाते
जो बेवफ़ा होते
प्यार को बदनाम करते
झूटमूट के वादे करते
एक भी पूरा न करते
तभी तो विश्वास
प्यार से उठता जाता
हर कदम पर
धोखा ही नज़र आता |
आशा

20 जुलाई, 2013

आत्मबल


आस्था का संबल पा
अवधान को जागृत किया
मेकल सुता की धारा में
कांछ कांछ मन निर्मल किया |
दीपक, बाती , स्नेह से
मन मंदिर का दीप जला
अभ्यर्थना के थाल को सज्जित  
 पत्र ,पुष्प कुमकुम  से  किया  |
जब पग बढाए राह पर
झंझावात से नहीं डरे
दीपक की लौ कपकपाई
बाधित वह भी नहीं हुई |
अधिक उजास से भरी
मार्गदर्शक बन उसने
कर्तव्य पूर्ण अपना किया |
आत्म बल से परिपूर्ण
उस पथ पर जाने वालों को
बाँध कर ऐसा रखा
तनिक भी भटकने न दिया |

18 जुलाई, 2013

भ्रम कुण्डली का


कुण्डली (१)
क्या यही गलत नहीं ,सागर से की आस
प्यासा प्यासा ही रहा, बुझ ना  पाई प्यास
बुझ ना  पाई प्यास, सुनो हे बंधू मेरे
वह नमक कहाँ ले जाए ,कहाँ से लाए मिठास |
कुण्डली (२ )
कड़वा कड़वा थू करे ,मीठा सब जग खाय
है जगत की रीत यही ,मीठा अधिक सुहाय  
मीठा अधिक सुहाय ,सुनो हे भ्राता मेरे
अति इसकी जो भी करे ,बीमारी बढ़  जाय |
(3)
प्यार बढाया आपने ,सौदा किया न कोय
दिन दूना फूला फला ,रोक न पाया कोय 
रोक न पाया कोय सोचो  किसने की भूल
विसराना ना उसे , ना देना बात को तूल |
आशा