दीपक जला तिमिर छटा
हुआ पंथ रौशन
जिसे देख फूला न समाया
गर्व से सर उन्नत
एक ययावर जाते जाते
ठिठका देख उसका तेज
खुद को रोक न पाया
एकाएक मुंह से निकला
रौशन पंथ किया अच्छा किया
पर कभी झांका है
अपने आसपास ऊपर नीचे
दीपक की लौ कपकपाई
कोशिश व्यर्थ गयी
देख न पाई तिमिर
दीपक के नीचे
पर पंथी की बात कचोट गयी
उसके गर्वित मन को
जब गहराई से सोचा
पाया पथिक गलत न था
परमार्थ में ऐसा डूबा
अपना तिमिर मिटा न सका
पर फिर मन को समझाया
कुछ तो अच्छा किया |
आशा