27 जून, 2016

अबला नारी बेचारी |

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अबला नारी बेचारी 
सबला  कभी ना हो पाई 
हर कोशिश असफल रही 
है अन्याय नहीं तो और क्या |
सीता ने दी अग्नि परीक्षा 
थी सचरित्र साबित करने को 
पर धोबी के कटाक्ष से 
धर से निष्कासित की गई |
यह तक नहीं सोचा गया 
बेचारी अबला कहाँ जाएगी 
कहाँ कहाँ भटकेगी 
किस का आश्रय लेगी|
दो पुत्रों को जन्म दिया 
किसी तरह पाला पोसा 
आखिर खुद से हारी 
धरती में समा गई |
द्रोपदी ने ब्याह रचाया अर्जुन से 
कुंती मां ने अनजाने में वस्तु समझ
कहा पाँचोंमें बाँट लो
वह पाँचों की पत्नी हो गई |
कितनी पीड़ा झेली होगी 
जब भरी सभा में धूत क्रीडा में 
 युधिष्ठर ने दाव पर उसे लगाया 
बाल पकड़ वहां ला 
उसका चीर हरण किया गया |
उसका आर्तनाद किसी ने न सुना
वह असहाय बिलखती रही  
मदद की गुहार लगाती रही
अबला थी वही रही |
आज भी सडकों पर
 अनेक  हादसे होते रहते 
आनेजानेवाले मूक दर्शक बने रहते 
नारी की अस्मिता लुट जाती 
वह अवला कुछ भी न कर पाती |
पुरुषों पर कोई न बंधन
रहते सदा स्वच्छंद
सारी  मर्यादा लक्ष्मण रेखा
केवल महिलाओं के  लिए |
कब अबला सबला होगी
किसी से हार न मानेगी
अपने निर्णय खुद लेगी
अपनी शक्ति पहचानेगी |
आशा






जब लिखा एक पत्र

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कागज़ काले किये फाड़े
पूरी रात बीत गई
की हजार कोशिशें
कोई बात न बन पाई
एक पत्र न लिख पाई
इधर उधर से टोपा मारा
किया जुगाड़ लाइनों का
पर सोच न पाई
होगा क्या संबोधन
अनेक शब्द खोजे लिखे
पर एक भी रास नहीं आया
फिर आँखें बंद कर
उंगली से एक चुना
आँखें खोली उसे पढ़ा
वहां लिखा था my love
वही उसे भा गया
पत्र पूरा हो गया
फिर आदर्श मन पर  हावी हुआ
उस पत्र को जला दिया
गलती कभी न दोहराएगी
उसने खुद से वादा किया |
आशा

24 जून, 2016

हाईकू (एक प्रयास )

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१-
साथ दीखते
धरा और गगन
कभी न मिले |
२-
बनी रहती
सुख -दुःख में दूरी
पट न पाती |
३-
हैं एक साथ
कुम्भ में राजा -रंक
कोई न भेद |
४-
हर बात का
है स्वाद खट्टा- मीठा
जैसा सोच हो |
५-
जो चाहो पाओ
धर्म या अधर्म में
सभी मिलेगा
आशा |

22 जून, 2016

नाचता मयूर क्यूं



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नाचते मयूर की
 मदमस्त हो गई चाल
फिर नयनों से बहते अश्रु से
 वह हुआ बेहाल
शायद अपने कुरूप पैर
 देख हुआ यह हाल
इतनी सी बात है
और मचाया उसने बबाल |
बात इतनी सी नहीं
 यह है वृहद् जाल
बादल देख वह चाहता
सान्निध्य प्रेयसी का
यह कुछ नया नहींहै
 प्रतीक्षा में बेहाल
यह कैसा विधान विधाता का
आने लगा ख्याल |
आशा

20 जून, 2016

पक्षी

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आवाज सुन कर कोयल की
बागों में चले आये थे
गौर से जब ऊपर देखा
बौर आम पर आए थे
हिलती टहनियां देखीं
कोयल की कुहू कुहू सुनी
मौसम बदलने लगा है
पक्षी यही जताने आये थे |
मंद मंद बयार चली
मयूर की थिरकन बढी
देखी व्योम में काली घटाएं
वर्षा की संभावना जगी
अपने मधुर स्वर से मयूर ने
उसके आने  का आगाज किया |
पक्षी  सयाने संकेत देने आते
मौसम बदल रहा है
यही जताने आते |


आशा

18 जून, 2016

वह सोचती



-
खिड़की के भीतर झांकती
फिर सोच में डूबी डूबी सी
धीरे से कदम पीछे हटाती
यह मेरा नहीं है न कभी होगा
कमरा है भैया का उसी का रहेगा |






khidki se jhankti ladki के लिए चित्र परिणाम

हाईकू


तपता  सूरज के लिए चित्र परिणाम
तपता सूर्य
बदहाल करे है
जीने न देता |

जलते पैर
दोपहर धूप में
कैसे निकलें |

बिन बदरा 
जल की है फुहार 
राहत मिली |
कारे बदरा 
झूम झूम बरसों 
इंतज़ार है |

 नील गगन 
बादल बिन जल 
त्राहि त्राहि है |

चला फब्वारा 
आभास है वर्षा का 
मन प्रसन्न |
 

आशा