17 जुलाई, 2016

सबला नारी

                                                                 
पढ़ने लिखने का
अरमान बहुत है
पर समय नहीं मिलता
फिर भी समय
खोज ही लेती हूँ
जब लिखने का मन होता है
कागज़ ले प्रयत्न करती हूँ
पेन्सिल से लिखती मिटाती
पर कोई शिक्षक नही मिलता
जो प्यार से समझाए
मुझे सही राह दिखलाए
अब मैं बच्ची नहीं हूँ
अपना हित पहचानती हूँ
भारत की  हूँ  नागरिक
अपने को कम न आंकती 
धीरे धीरे यत्न करूंगी
तभी सबला हो पाऊँगी
अपने हित अहित जान
पूर्णता  प्राप्त कर  पाऊंगी |
आशा

16 जुलाई, 2016

बेटी

आँगन में तुलसी के लिए चित्र परिणाम

बेटी मेरे घर की शोभा, आँगन में तुलसी सी 
घर बाहर उजियारा करती ,दीपशिखा की लौ  सी 
हर क्षेत्र में हो अग्रणी, बिंदी सी सजती मस्तक पर 
जहां कहीं वह कदम रखती, कोई नहीं  दूसरी उससी |
२-
सुजान सुशील जिसकी बेटी
गर्व से वह सब से कहती
बड़े भाग्य से पाया मैंने
लाखों में एक है मेरी बेटी |
३-
जिस दिन उसने जन्म लिया
घर मेरा परिपूर्ण हुआ
बिन बेटी वह था अधूरा
अब जा कर वह पूर्ण हुआ |
आशा



15 जुलाई, 2016

आज




कल बीता बात गई
दिन बीता रात गई
कल की किसको खबर
क्या होगा मालूम नहीं
हम तो आज में जीते हैं
अगले क्षण का पता नहीं
आज तो आज ही है
जैसे चाहो जितना चाहो
पूर्ण उपभोग उसका करो 
मुठ्ठी भर रेत की तरह
कहीं समय न फिसल जाए
सब कार्य अधूरे रह जाएं
हम तो आज में जीते हैं
कल की किस को खबर |
आशा

13 जुलाई, 2016

जिन्दगी की पतंग

उड़ती पतंग जिन्दगी की के लिए चित्र परिणाम
जिन्दगी की पतंग 
बंधी साँसों की डोर से
उड़ चली आसमान में 
डोर कब कटनी है 
नहीं जानती 
उड़ान भरती बिंदास
अनजाने परिवेश  में 
मन में अटूट विश्वास लिए 
 उसने हार कभी  न मानी 
ना ही कभी मानेगी 
ऊंचाई छूना चाहती है 
है विकल आगे जाने को 
डोर है मजबूत 
यूं ही नहीं टूटेगी 
मंजिल तक पहुंचा कर ही 
किसी कमजोर क्षण में 
झटके से टूटेगी
या झटके खाएगी 
कहीं बीच में लटका देगी
यह है मात्र कल्पना 
सच से बहुत अलग 
कोई नहीं जानता 
कितनी साँसें लिखी हैं 
उसके भाग्य में |
आशा

12 जुलाई, 2016

बरखा ( हाईकू )

 घटाएं सावन की के लिए चित्र परिणाम
घन गरजा
टकराए बदरा
आई बरखा |
सावन आया
फुहार बरखा की
भली लगती |


नदी उफनी
भरे ताल तलैया
आई बरखा |

झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |

जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |

आशा

09 जुलाई, 2016

हाथ मेरे कुछ भी न आया

दिल लगा बैठा के लिए चित्र परिणाम

मैंने समय व्यर्थ ही गवाया
हाथ मेरे कुछ भी न आया
इस बात से ही प्रसन्न हूँ कि
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया
मेरी हार उसकी जीत में बदली
बस इसी ने मेरा दिल दुखाया
फिर भी उसे बधाई दी यह सोच
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया 
हुआ नाकाम जिस के कारण 
उसी से दिल लगा बैठा 
जब उसी से हार मिली 
मन ही अपना गवा बैठा |
आशा

07 जुलाई, 2016

चोर

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था लाचार आदतों से
था रोग हाथ की सफाई का
जब राज खुलने लगा
बाजार चर्चा का गर्म हुआ
था आज तक चोर गुम नाम
सब के समक्ष आ ही गया
वह सरे आम बदनाम हो गया
नजरें न मिला पाया सब से
जीना उसका हराम हो गया |
आशा